वाणी की शक्ति
एक राजा था जो अत्यंत कटु वचन बोलता था। वह हर किसी का अपमान करता और कठोर भाषा का प्रयोग करता। दरबार में कोई भी उसकी बातों का प्रतिवाद करने का साहस नहीं करता था। एक दिन राजा ने दरबारियों से कहा, ‘कल प्रत्येक व्यक्ति ऐसी वस्तु लेकर आए, जिसे वह संसार में सबसे बुरा समझता हो।’ अगले दिन कोई मल-मूत्र लाया, कोई सड़ी-गली वस्तु, कोई कीचड़। लेकिन एक बुद्धिमान दरबारी एक मृत व्यक्ति की जीभ काटकर ले आया। राजा ने आश्चर्य से पूछा, ‘इसमें क्या बुराई है?’ उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, ‘महाराज, संसार की अधिकांश बुराइयों की जड़ यही है। तलवार के घाव समय के साथ भर जाते हैं, लेकिन कटु वचनों से लगे घाव जीवनभर पीड़ा देते हैं।’ राजा को अपनी कटुता का स्मरण हो आया और वह थोड़े समय के लिए मौन और लज्जित हो गया। कुछ समय बाद राजा ने पुनः दरबारियों से कहा, ‘अब प्रत्येक व्यक्ति ऐसी वस्तु लेकर आए, जिसे वह संसार में सबसे श्रेष्ठ मानता हो।’ अगले दिन कोई मिठाइयां लाया, कोई घी, कोई फूल। लेकिन वही बुद्धिमान दरबारी फिर एक मृत व्यक्ति की जीभ काटकर ले आया। राजा ने हैरानी से पूछा, ‘तुम तो इसे सबसे बुरी वस्तु मानते थे, अब इसे ही सबसे अच्छी वस्तु क्यों कह रहे हो?’ दरबारी मुस्कुराया और बोला, ‘महाराज, यही जीभ जब प्रेम, सम्मान, करुणा और भगवान के नाम से चलती है, तब यह सबसे मधुर और कल्याणकारी वस्तु बन जाती है। यही वह शक्ति है जो मन जीत लेती है, समाज को जोड़ती है और दिलों में प्रेम जगाती है।’
प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी