मौलाना रूम अपने समय के ख्याति प्राप्त विद्वानों में गिने जाते थे। एक दिन मौलाना रूम तालाब के किनारे बैठे थे और उनके पास कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकें रखी हुई थीं। उसी समय एक फकीर आया और उसने पूछा कि ये कौन-सी पुस्तकें हैं? मौलाना रूम ने कहा, ‘ये तुम नहीं जानते, इनमें तर्क शास्त्र की बातें हैं?’ फकीर ने सभी पुस्तकें उठाकर तालाब में फेंक दीं। यह देखकर मौलाना रूम को बहुत दु:ख हुआ और बोले, ‘अरे तुमने यह क्या किया? उसमें से कुछ पुस्तकें तो ऐसी थीं, जो कहीं नहीं मिलतीं।’ फकीर ने तालाब में हाथ डालकर सब पुस्तकें निकाल दीं। वे ज्यों की त्यों सूखी हुई थीं। यह देखकर मौलाना रूम दंग रह गये। पूछा, ‘यह क्या बात है?’ फकीर ने कहा, ‘यह तुम नहीं जानते; इसे भक्ति का प्रभाव कहते हैं।’ मौलाना रूम को अपनी गलती का अहसास हो गया और वे फकीर के पैरों में गिर पड़े। फकीर ने उन्हें अपने सीने से लगा लिया। ये फकीर थे हजरत शम्स तबरेजी। इस घटना से मौलाना रूम के जीवन की दिशा ही बदल गयी, वे सब कुछ त्यागकर उनके शिष्य हो गये और ईश्वर भक्ति में लीन रहने लगे।
प्रस्तुति : पुष्पेश कुमार पुष्प