डॉ. मधुसूदन शर्मा
सत्य और अहिंसा की भांति प्रार्थना भी महात्मा गांधी के जीवन का अभिन्न अंग थी। वे कहते थे, ‘प्रार्थना मेरे जीवन का ध्रुवतारा है। मैं भोजन करना छोड़ सकता हूं, लेकिन प्रार्थना नहीं। आत्मा को परमात्मा से मिलाने का एकमात्र साधन प्रार्थना ही है।’ निस्संदेह, प्रार्थना धर्म की सबसे प्राचीन अभिव्यक्तियों में से एक है। हम प्रार्थना द्वारा सर्वशक्तिमान परमेश्वर की स्तुति, गुणगान, सहायता की कामना, मार्गदर्शन की इच्छा, दूसरों का हित चिंतन आदि करते हैं। प्रार्थना में सर्वशक्तिमान ईश्वर के लिए आदर है, प्रेम है, आवेदन है, विश्वास है।
संस्कृत में प्रार्थना को ‘प्रकर्षेण अर्धयते यस्यां सा प्रार्थना’ कहकर परिभाषित किया गया है। जिसका तात्पर्य है, प्रकर्ष रूप से की जाने वाली अर्थना (अभ्यर्थना)। सरल शब्दों में कहें तो प्रार्थना ईश्वर से किसी वस्तु के लिए तीव्र आकांक्षा से किया गया निवेदन है। सभी धर्मों के धर्म-गुरुओं, ग्रंथों ने प्रार्थना पर बहुत बल दिया है। हिन्दू धर्म में प्रार्थना-पूजा, अर्चना, उपासना, आराधना के रूप में की जाती है। आराधना को प्रार्थना का सबसे महान रूप माना गया है, क्योंकि इसमें भगवान के सामने पूरे अस्तित्व का एक प्रकार से समर्पण है। इस्लाम में भी कहा गया है, ‘दुआ इबादत का सार है।’ सिख धर्म में अरदास सिख पूजा का अनिवार्य हिस्सा है। यह परमशक्ति से एक विनम्र प्रार्थना होती है। ईसाई धर्म में भी प्रेयर को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। ईसाई धर्म की मान्यता है कि जब तक कोई ईसाई प्रार्थना करना नहीं सीखता, वह अच्छा ईसाई नहीं हो सकता। सभी धर्म के लोग अपने-अपने धर्म के हिसाब से प्रार्थना करते हैं।
पश्चिम में योग ज्ञान की अलख जगाने वाले योगी परमहंस योगानंद कहते हैं- हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के दो तरीके हैं। एक है ऐहिक। उदाहरण के लिए, जब हमारा स्वास्थ्य खराब हो तो हम उपचार के लिए डॉक्टर के पास जाते हैं। लेकिन एक समय पर मानवीय सहायता निष्प्रभावी हो जाती। तब हम ईश्वर की शक्ति की ओर मुड़ते हैं। ऐहिक शक्ति सीमित होती है। मान्यता है कि परमेश्वर नहीं चाहते कि हम रटी-रटायी प्रार्थनाएं करें। बल्कि हम समर्पण की भावना से श्रद्धा, भक्ति पूर्वक पूर्ण हृदय से प्रार्थना करें।
प्रसिद्ध व अंग्रेज कवि कॉलरिज से जब पूछा गया कि ईश्वर का आशीर्वाद पाने के लिए सबसे अच्छी प्रेयर कौन-सी हो सकती है तो उन्होंने कहा, ‘वह परमपिता परमेश्वर, जिसने हम सबको बनाया और प्रेम किया उसके लिये सबसे अच्छी प्रार्थना उस व्यक्ति की मानी जाती है जो सृष्टि की सभी छोटी बड़ी चीजों से प्रेम करता है।’
प्रसिद्ध कवि टेनिसन ने प्रार्थना के बारे में कहा, ‘बिना प्रार्थना के मानव और पशु में कोई भेद नहीं हैं। प्रार्थना से आध्यात्मिक प्रवाह तो फैलता ही है साथ ही साधक अपने मन-मस्तिष्क में शान्ति, पवित्रता, निर्मलता तथा प्रेम से अभिभूत हो जाता है।’
एक बार देवर्षि नारदजी ने भगवान से पूछा, ‘देवेश्वर! आप कहां निवास करते हैं?’ इस पर भगवान ने कहा, ‘नाहं वसामि वैकुण्ठे योगिनां हृदये न वै। मभ्दक्ता यत्र गायंति तत्र तिष्ठामि नारद।’
अर्थातzwj;् ‘हे नारद! मैं न तो वैकुंठ में ही रहता हूं और न योगियों के हृदय में ही रहता हूं। मैं तो वहीं रहता हूं, जहां प्रेमाकुल होकर मेरे भक्त मेरे नाम का कीर्तन किया करते हैं। मैं सर्वदा लोगों के अन्तःकरण में विद्यमान रहता हूं।’
यहूदी कोशिश करते हैं प्रार्थना में परमेश्वर के साथ एकाकार होने की। वे मानते हैं, प्रार्थना शब्दातीत है। उनका पूरा परिश्रम ईश्वर के साथ संपर्क करने के लिए होता है। एक बार ईश्वर के साथ संपर्क हो गया फिर सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
परमहंस योगानन्द कहते हैं, प्रार्थना का पहला नियम है कि ‘ईश्वर से केवल उचित इच्छाओं की ही पूर्ति की प्रार्थना करें । दूसरा नियम यह है कि उनकी पूर्ति की मांग ईश्वर का पुत्र होने के नाते से करें : ‘मैं आपका पुत्र हूं। आप मेरे पिता हैं। आप और मैं एक ही हैं।’ जब गहराई से अनवरत प्रार्थना करते जाएंगे तो आपको अपने हृदय में एक महान आनंद उमड़ता अनुभव होगा। आप परमेश्वर से प्रार्थना कीजिए कि प्रभु मेरी यह आवश्यकता है, मैं इसके लिए मेहनत करने के लिए तैयार हूं। इस उचित कार्य करने की बुद्धि मुझे दीजिए। मैं अपने विवेक बुद्धि का उपयोग करूंगा और दृढ़ निश्चय के साथ मेहनत करूंगा। आप मेरी बुद्धि, इच्छा शक्ति और कार्यशीलता को उचित दिशा में निर्देशित कीजिए ताकि मुझसे उचित कार्य ही हो।’