इस दिन घरों में कुलदेवी-देवता का पूजन भी किया जाता है। परिवार के मंगल और घर में धन-धान्य बना रहे, इस कामना से किया गया अष्टमी-नवमी का पूजन अवश्य ही फलीभूत होता है। मां भगवती की अनुकंपा से यह अपनी भीतरी शक्तियों को जाग्रत करने का अवसर है।
पवन शर्मा
नवरात्रि का त्योहार नौ दिनों तक मनाया जाता है। वहीं नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि का बड़ा महत्व माना गया है। इन तिथियों को क्रमशः दुर्गाष्टमी और महानवमी के नाम से जानते हैं। मान्यता है कि अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजा करने से मां दुर्गा का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
नवरात्रि का आठवां दिन, जिसे अष्टमी या दुर्गाष्टमी के रूप में जाना जाता है, दुर्गा पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन भक्त मां दुर्गा की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।
इस दिन घरों में कुलदेवी-देवता का पूजन भी किया जाता है ताकि परिवार किसी भी तरह के अनिष्ट से बचा रहे। परिवार के मंगल और घर में धन-धान्य बना रहे, इस कामना से किया गया अष्टमी-नवमी का पूजन अवश्य ही फलीभूत होता है। मां भगवती की अनुकंपा से यह अपनी भीतरी शक्तियों को जाग्रत करने का अवसर है। दुर्गा पूजा अनुष्ठानों के दौरान 64 योगिनियों और अष्ट शक्ति या मातृकाओं की पूजा की जाती है। अष्ट शक्ति, जिसे आठ शक्तियों के रूप में भी जाना जाता है, भारत के विभिन्न हिस्सों में इसकी अलग-अलग व्याख्या की जाती है। अंततः सभी देवी शक्ति के रूप में जानी जाने वाली शक्तिशाली ऊर्जा को प्रकट करती हैं।
दुर्गा पूजा के दौरान पूजी जाने वाली अष्ट शक्ति में ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नरसिंगी, इंद्राणी और चामुंडा हैं।
दुर्गा का अष्टम स्वरूप ‘महागौरी’: ‘प्रकृति’ परमेश्वरी का सौम्य, सात्विक और आह्लादक स्वरूप है। सत्व ‘प्रकृति’ से ही सृष्टि का संरक्षण और लोक कल्याण होता है। ‘महागौरी’ रूप में देवी करुणामयी, स्नेहमयी, शांत और सौम्य दिखती हैं। इसी सौम्य और सात्विक प्रकृति की लोक सदा कामना करता है। हिमालय पर्वत पर इन्द्र आदि देवतागण जिस देवी की स्तुति कर रहे थे वह भी ‘महागौरी’ देवी का ही स्वरूप था। इसलिए ‘सत्यं शिवं सुन्दरमzwj;्’ को व्यक्त करने वाली सुख-समृद्धि तथा सौभाग्य प्रदायिनी इस लोककल्याणी महाशक्ति की पूजा का दुर्गाष्टमी के दिन विशेष अनुष्ठान होता है।
दुर्गाष्टमी के दिन दुर्गापूजा की परम्परा इतना व्यापक रूप धारण कर लेती है कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और जितने भी ग्रामsbquo; नगर और प्रान्त हैं, अपनी-अपनी आस्थाओं और पूजा शैलियों के अनुसार सिद्ध शक्तिपीठों में बहुत ही आस्थाभाव से दुर्गाष्टमी की पूजा-अर्चना करते हैं। ‘सिद्धिदात्री’ दुर्गा की यह नौवीं शक्ति ‘विश्व के सभी कार्यों को साधने वाली सर्वार्थसाधिका देवी हैं। ‘सिद्धिदात्री’ देवी की अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियां हैं, जिनका मार्कण्डेय पुराण में उल्लेख किया गया है। देवीपुराण के अनुसार भगवानzwj;् शिव ने इसी शक्ति की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं और वे ‘अर्द्धनारीश्वर’ कहलाए। दुर्गा के इस स्वरूप की देव, ऋषि, सिद्ध, योगी, साधक व भक्त मोक्ष प्राप्ति के लिए उपासना करते हैं।
भविष्य पुराण के उत्तर-पूर्व में महानवमी व दुर्गाष्टमी पूजन के विषय में श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर का संवाद मिलता है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार जो भी अष्टमी और नवमी तिथि को मां दुर्गा की पूजा करता है उसका घर हमेशा धन-धान्य से परिपूर्ण रहता है। उसके कुल की रक्षा होती है और तमाम अनिष्ट से बचाव संभव होता है। बच्चों या किशोरों के लिए अष्टमी और नवमी पूजन इसलिए विशेष है ताकि वे ईश्वर की अनुकंपा से अपने कुल का नाम रोशन कर सकें।
दुर्गा पूजन के साथ अपने ईष्ट की आराधना का सर्वाधिक उपयुक्त समय है। महानवमी पूजा को इतना महत्वपूर्ण माना जाता है कि इस दिन की पूजा शरद नवरात्रि के सभी नौ दिनों की पूजा के समान होती है। प्रत्येक राज्य में त्योहार मनाने के अपने विशेष तरीके हैं, लेकिन वे सभी देवी दुर्गा की पूजा करते हैं।
उत्तरी भारत में, महानवमी पर देवी कन्या के सम्मान में कन्या पूजा की जाती है। इस अनुष्ठान में, नौ लड़कियों को घर में आमंत्रित किया जाता है। उन्हें पवित्र भोजन खिलाया जाता है। मान्यता है कि नौ लड़कियां देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं। नौ कन्याओं के साथ एक लड़के की भी पूजा की जाती है। यह लड़का देवी दुर्गा के भाई भैरव का अवतार है, जो कथाओं के अनुसार उनकी रक्षा करने का वादा करते हैं।