
महाभारत का युद्ध चल रहा था। एक ओर अर्जुन थे, जिनके सारथी श्रीकृष्ण थे तो दूसरी ओर कर्ण थे और उनके सारथी थे शल्य। भगवान श्रीकृष्ण ने कर्ण के सारथी से कहा, ‘तुम हमारे विरुद्ध जरूर लड़ना परंतु मेरी एक बात जरूर मानना। जब कर्ण हम पर प्रहार करे तब कहना कि ‘यह भी कोई प्रहार है, आप प्रहार करना ही नहीं जानते।’ बस तुम इन शब्दों को दोहराते रहना।’ सारथी शल्य ने श्रीकृष्ण की बात स्वीकार कर ली। युद्ध आरंभ हुआ। कर्ण के प्रत्येक प्रहार पर शल्य कहता, ‘यह भी कोई प्रहार है? आप प्रहार करना ही नहीं जानते।’ उधर, अर्जुन के प्रत्येक प्रहार पर श्रीकृष्ण कहते, ‘वाह, कैसा प्रहार किया है। क्या निशाना साधा है।’ बार-बार अपने सारथी का एक ही वाक्य सुनकर कर्ण हतोत्साहित हो गया। फलस्वरूप अर्जुन की शक्ति बढ़ती गई और पांडव पहले से अधिक शक्तिशाली हो गए। इसीलिए प्रोत्साहन मन के लिए अमृत है जबकि हतोत्साहित मन पराजय की पहली सीढ़ी है।
प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार
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