एकदा : The Dainik Tribune

एकदा

इच्छा नियंत्रण से सुख

एकदा

एक महात्मा नदी किनारे आश्रम बनाकर रहने लगे थे। वह हर दिन लोगों को प्रवचन देते। एक गांव का सेठ जिसने इतना धन कमा लिया था कि उसकी कई पीढ़ियां भी आराम से अपना जीवन जी सकें, लेकिन उसके जीवन में सुख-शांति नहीं थी। वह धन कमाने की भागदौड़ में दिन-रात लगा रहता था। उसने कई बार सुख-शांति के लिए सोच-विचार किया लेकिन उससे उतनी ही दूरी बनी रहती। सेठ भी एक दिन महात्मा जी के पास अपनी समस्या लेकर पहुंचा। संत ने उसकी बातें सुनकर कहा कि तुमने जीवन में काफी धन कमा लिया है लेकिन सुख-शांति का तुमसे दूर रहने का एकमात्र कारण है तुम्हारी इच्छाएं। आदमी अपनी इच्छाओं के चलते सदा धन होते हुए भी गरीब बना रहता है। समुद्र में एक लहर आती है और मिट जाती है फिर दूसरी आ जाती है। इच्छाएं भी ऐसे ही बनी रहती हैं।‌ इच्छाएं छोड़ो। सहज भाव से काम करो, निष्काम भाव बनाए रखो। बस इसी से तुम सुख-शांति भरा जीवन जी सकोगे। सेठ अपनी समस्या का समाधान पाकर संत को नमन करके चल दिए।

प्रस्तुति : दिनेश विजयवर्गीय

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