एक वृद्ध महिला रास्ते में लकड़ी का गट्ठर उठवाने के लिए आने-जाने वाले लोगों से मदद मांग रही थी, कोई भी व्यक्ति उसकी मदद करने को आगे नहीं आया। तभी कोट-पैंट व टाई पहने एक सज्जन दिखाई दिए। उस महिला ने चाहते हुए भी सज्जन व्यक्ति से मदद नहीं मांगी। उस सज्जन व्यक्ति को लगा कि शायद वह महिला उनसे कुछ कहना चाहती है तो उन्होंने रुककर उससे पूछा, ‘मां क्या कहना चाहती हो? यह आत्मीय संबोधन सुनकर वृद्ध महिला की आंखों में आंसू आ गए और वह बोली मैं यहां से गुजरने वाले हर व्यक्ति से लकड़ी का गट्ठर उठवाने के लिए मदद मांग रही थी परन्तु कोई भी मेरी मदद को नहीं आया।’ उस सज्जन ने वह लकड़ी का गट्ठर उठाकर महिला के सिर पर रख दिया। वह सज्जन और कोई नहीं बल्कि मुंबई न्यायालय के न्यायाधीश गोविन्द रानाडे जी थे। व्यक्ति अपने पद से नहीं, अपने सद्गुणों से महान बनता है।
प्रस्तुति : सतपाल