महान वैज्ञानिक जगदीशचंद्र बसु सन् 1884 में कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में भौतिकी के प्राध्यापक पद पर नियुक्त थे। उस समय के अंग्रेजी शासन में भारतीयों के साथ बड़ा भेदभाव किया जाता था। किसी भी भारतीय प्रोफेसर को यूरोपियन प्रोफेसर की तुलना में दो-तिहाई वेतन दिया जाता था। इससे बसु क्षुब्ध हो गए। उन्होंने कहा, ‘समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाना चाहिए। मैं वेतन लूंगा तो पूरा, नहीं तो वेतन लूंगा ही नहीं।’ उन्होंने पूरे तीन साल वेतन नहीं लिया। आर्थिक तंगी के कारण कलकत्ता का महंगा मकान छोड़कर उन्हें शहर से दूर एक सस्ता-सा मकान लेना पड़ा। कलकत्ता जाने के लिए वह पत्नी सहित स्वयं नाव खेकर हुगली नदी पार करते। पत्नी नाव खेकर वापस ले आती और शाम को बसु को लेने नाव लेकर जाती। इसके बावजूद वह अपने निश्चय से डिगे नहीं। अंततः अंग्रेजों को हार माननी पड़ी और उन्हें यूरोपियन प्रोफेसरों के समान वेतन देना स्वीकार कर लिया गया। प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार