मदन गुप्ता सपाटू
पितृपक्ष के अगले दिन 18 सितंबर से अधिक मास शुरू हो रहा है। शास्त्रों में इसे भगवान पुरुषोत्तम का महीना बताया गया है। इसलिए इस महीने में धर्म-कर्म का विशेष महत्व माना गया है। इसे मलमास भी कहा गया है, इसलिए इस दौरान मुंडन, विवाह जैसे कार्य निषेध माने जाते हैं। लेकिन, ऐसा नहीं है कि मलमास में कोई शुभ काम हो ही नहीं सकता। विवाह की बातचीत, विवाह की मौखिक सहमति, पहले से आरंभ किए गये कार्यों का समापन, प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री, वाहन की बुकिंग, बयाना, सरकारी कार्य, शिक्षा के लिए दाखिला जैसे काम किये जा सकते हैं। वैसे भी मलमास उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में शुरू हो रहा है, जो शुभ है। आगामी 16 अक्तूबर तक चलने वाले इस मलमास के दौरान 9 दिन सर्वार्थसिद्धि योग, 2 दिन द्विपुष्कर योग, एक दिन अमृतसिद्धि और रविपुष्य योग भी रहेगा। इस दौरान कई शुभ कार्य कर सकते हैं।
ये कार्य न करें
मलमास के दौरान घर, कार इत्यादि नहीं खरीदना चाहिये। घर का निर्माण कार्य शुरू न करें और न ही उससे संबंधित कोई समान खरीदें। विवाह, गृह-प्रवेश, सगाई, मुंडन जैसे शुभ कार्य न करें। नये कार्य की शुरुआत भी नहीं करनी चाहिये।
मलमास का पंचांग
मलमास का संबंध ग्रहों की चाल से है। पंचांग के अनुसार मलमास या अधिक मास का आधार सूर्य और चंद्रमा की चाल से है। सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है। वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। इन दोनों के बीच 11 दिनों का अंतर होता है। यही अंतर 3 साल में एक महीने के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए हर 3 साल में एक अतिरिक्त चंद्र मास आता है। बढ़ने वाले इस महीने को ही अधिक मास या मलमास कहा जाता है।
18 से मलमास
मलिन मास को भगवान विष्णु ने दिया अपना नाम
मलमास को मलिन मास भी कहा जाता है। शुभ कार्य वर्जित होने के कारण मान लिया जाता है कि यह मास अच्छा नहीं है। जबकि, ऐसा है नहीं। शास्त्रों के अनुसार इस माह में जप, तप, दान, तीर्थयात्रा करने का कई गुणा फल प्राप्त होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार हर राशि, नक्षत्र और 12 महीनों का कोई न कोई स्वामी है, लेकिन मलमास का कोई स्वामी नहीं होने के कारण भगवान विष्णु ने इसे अपना पुरुषोत्तम नाम दिया।
160 साल बाद लीप वर्ष में अधिक मास पड़ रहा है। इससे पहले सितंबर 1860 में ऐसा योग बना था। इसके बाद अब 2039 में दोबारा यह योग बनेगा। अधिकमास के कारण इस बार 2 अश्विन मास पड़ेंगे। इसलिए चातुर्मास 4 महीने के बजाय 5 महीने का होगा। मलमास खत्म होने के बाद 17 अक्तूबर से नवरात्र शुरू होंगे। इसके बाद 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी के साथ ही चातुर्मास समाप्त होगा।
ये दिन विशेष…
सर्वार्थसिद्धि योग : 21, 26 सितंबर और अक्तूबर में 1, 2, 4, 6, 7, 9, 11 को है। ये दिन सफलतादायक हैं।
द्विपुष्कर योग : इसमें दोगुना फल मिलता है। यह योग 19 और 27 सितंबर को रहेगा।
अमृतसिद्धि योग : इसे दीर्घकालीन कार्यों के लिए उत्तम माना गया है। यह 2 अक्तूबर को पड़ेगा।
रविपुष्य योग : इसमें कुछ नये काम आरंभ कर सकते हैं। यह 11 अक्तूबर को होगा।
- मलमास में पीले फल, मिठाई, अनाज व वस्त्रों का दान करना शुभ माना गया है, क्योंकि भगवान विष्णु का प्रिय रंग पीला है। मलमास में पूजा-पाठ, व्रत, उपासना, दान और साधना को सर्वोत्तम माना गया है। इस दौरान किए गये दान का कई गुणा पुण्य प्राप्त होता है। इस महीने पानी में गंगाजल मिलाकर नहाना चाहिए। इस महीने पीपल के पेड़ को जल अर्पण करके गाय के घी का दीपक जलाना भी शुभ माना गया है।
- मलमास में सूर्योदय के पहले उठकर स्नान-ध्यान करने का विधान है। साथ ही श्रीमद्भगवत का पाठ करने से अमोघ पुण्यलाभ मिलता है। मलमास में उन लोगों को दान-पुण्य जरूर करना चाहिए जिनकी कुंडली में सूर्य शुभ फल नहीं दे रहा हो। जितना हो सके धर्म से जुड़े कार्य करें और गरीबों की मदद करें।
- ब्रह्म मुहूर्त मे उठकर स्नान करके केसर युक्त दूध से भगवान विष्णु का अभिषेक करें। पीले पुष्प अर्पित करें। तुलसी की माला से ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जप करें।
- तुलसी पूजन जरूर करें। रोज संध्या के समय तुलसी के सामने दीप दान कर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जप करते हुए 11 बार परिक्रमा करें। ऐसा करने से घर के संकट और दुख खत्म हो जातें हैं। घर में सुख-शांति का वास होता है।
- इस मास में दक्षिणावर्ती शंख की भी पूजा की जाती है। कहा जाता है इससे श्री हरी विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं।