सत्यव्रत बेंजवाल
सनातनावलंबियों में जीवन के प्रारंभ से मोक्ष तक मुहूर्तों का विशेष रूप से विचार करने की परंपरा है। षोडश संस्कारों का चलन आज भी अनादि काल से चला आ रहा है। नूतन कार्यों का शुभारंभ करने में भी ग्रह-नक्षत्र एवं शुभ मुहूर्त का चलन है ताकि जीवन में कोई विघ्न-बाधा न आये। शुभ कार्यों का प्रारंभ करने में ‘शुक्रास्त’ एवं ‘गुर्वास्त’ का विचार प्रमुखता से किया जाता है।
शुक्रास्त होने का तात्पर्य शुक्र का सूर्य के अधिक निकट आ जाना अर्थातzwj;् शुक्र की सूर्य से दूरी 9 डिग्री या इससे कम होना है। शुक्र अपनी गति से भ्रमण करते हुए जब सूर्य के सान्निध्य में आते हैं तब उनका सूर्य किरणों में निमघ्न होने के कारण शुक्र दिखाई नहीं देते, इसी घटना को ‘शुक्रास्त’ कहा गया है। शुक्रास्त के कारण पृथ्वी का पर्यावरण शुक्र प्रभा से दूषित माना गया है। सूर्य, बृहस्पति, शुक्र आदि ग्रहों का विवाह लगन, शुभ मुहूर्तों की काल गणना में विशेष विचारणीय होता है।
वार्धक्य दोष प्रारंभ होकर 1 अक्तूबर को शुक्र पूर्व में अस्त हुअा, 25 नवंबर तक शुक्र पश्चिम में उदित होगा तथा 28 नवंबर, 2022 तक शुक्र बाल्यत्व दोष होने से शुभ एवं नूतन कार्य नहीं होंगे जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, व्रतोद्यापन, भूमिपूजन, चूड़ाकर्म (मुंडन), मुकलावा (द्विरागमन) आदि सभी प्रकार के नूतन कृत्य। जबकि पूजा-जप-जन्मदिन पूजा, नामकरण आदि कृत्य सुचारु रूप से होंगे।