संत चिदंबरम् दक्षिण भारत की अग्रणी विभूतियों में से थे। वे साधना तथा धर्म-शास्त्रों के अध्ययन में लीन रहते थे। जो भी उनके दर्शनों के लिए पहुंचता उसे सदुपदेश देते तथा कल्याण का मार्ग सुझाते। एक दिन एक महिला अपने पति के साथ संत के पास पहुंची और बोली, ‘महाराज संतान न होने के कारण हमारा जीवन निराशा से भर गया है। आशीर्वाद दें कि पुत्र न सही एक पुत्री ही हो जाए।’ संत ने उसे एक मुट्ठी चने दिए तथा कहा, ‘तुम आराम से बैठकर चने खाओ। मैं एक घंटे बाद तुमसे बातें करूंगा।’ संत ने देखा कि महिला के पास बैठा भूखा बच्चा उससे चने मांगने लगा। महिला ने उसे झिड़क दिया तथा एक भी चना नहीं दिया। कुछ देर बाद महिला संत के पास पहुंची तो उन्होंने कहा, ‘देवी, तूने भूखे बच्चे के हाथ पर चार चने रखने तक से इन्कार कर दिया। तेरे हृदय में भूखे बच्चे को देखकर करुणा नहीं जागी। फिर तुझ जैसी कंजूस महिला को भगवान कीमती बच्चा क्यों देगा?’ संत जी ने उसे समझाया, ‘तुम प्रत्येक बच्चे को प्यार देना सीखो। उसे अपना ही बच्चा मानकर उससे ममता करो। इसके बाद किसी अनाथ बच्चे को अपना लेना। तुम निस्संतान नहीं रहोगी।’
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