एक बार राधा जी ने श्रीकृष्ण से कहा, ‘मुझे आपकी मुरली से बहुत ईर्ष्या होती है, क्योंकि यह मुरली आपसे कभी अलग नहीं होती, जबकि हम गोपियों को आपसे अलग होना पड़ता है। क्या हम आपकी भक्त नहीं हैं?’ भगवान श्रीकृष्ण ने राधा से कहा— ‘एक बार मैंने बांसुरी के लिए बांस के पेड़ की शाखा लेने के लिए अनुमति मांगी। बांस के पेड़ ने बिना कोई प्रश्न किये तत्क्षण मुझे सहर्ष स्वीकृति दी। जब मैंने उस शाखा को वृक्ष से अलग किया तो निस्संदेह उससे, उसे पीड़ा हुई होगी। बांस को बांसुरी का आकार देने के लिए उसे काटा, छीला और तराशा गया होगा, लेकिन उसने कभी उफ तक नहीं की। उसने मेरा प्रेम पाने के पूर्णत: समर्पण कर दिया। इसलिए यह मुरली मेरी अत्यंत प्रिय और अभिन्न है। प्रभु का प्रेम पूर्ण समर्पण से ही पाया जा सकता है।’
प्रस्तुति : मधुसूदन शर्मा