हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ : The Dainik Tribune

हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ

हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ

कौशल सिखौला

बेहद विचलित भरत ने गुरुवर से पूछा— राम-सीता का विवाह शुभ मुहूर्त में हुआ। राज्याभिषेक का मुहूर्त भी प्रकांड विद्वान त्रिकालदर्शी गुरुजनों ने निकाला। तब राम-जानकी को सिंहासन की बजाय वनवास क्यूं मिला? तमाम शास्त्र विफल कैसे हो गए? तब गुरु वशिष्ठ ने भरत को बैठाया और शांत भाव से मुस्कुराते हुए कहा :-

सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखी कहेहूं मुनिनाथ,

हानि लाभ जीवन मरण, जस अपजस विधि हाथ।

अर्थात‍् जो विधि ने निर्धारित किया वह होकर रहेगा। विधि के लिखे को न शास्त्र बदल सकते हैं, न ज्योतिष, न भाग्य, न वर्तमान। यह सब विधि अर्थात‍‍् विधाता के हाथ है। इस अनादि ब्रह्म के नियंता विधाता ने जो लिख दिया सो लिख दिया। मुहूर्त में भला इतनी शक्ति कहां कि वह विधि का लेख बदल दे। होनी प्रबल है और घटकर रहेगी।

भावी का लिखा मतलब कर्मों का लिखा। करमन की गति न्यारी साधो करमन की गति न्यारी। चाहे लाख करे चतुराई करम का लेख मिटे ना रे भाई। भावी ही थी जिसने संसार के सबसे प्रबल साम्राज्य अयोध्या को सूना कर दिया। सब अकेले-अकेले। राम-सीता वन में अकेले फिर सीता लंका में अकेली। वैधव्य झेलती कौशल्या, सुमित्रा अकेली। अपार पापबोध में घिरीं संत्रास और आत्मधिक्कार सहती कैकेयी अकेली। मंथरा अकेली, उर्मिला अकेली, मांडवी अकेली, श्रुतकीर्ति अकेली। सूनी अयोध्या सूनी जनकपुरी प्रजा अकेली। शोक की छाया तले गुरु अकेले तपस्या अकेली साधना अकेली।

विधि ने जो रचा वह होकर रहेगा। सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र इसी बलवान होनी के चलते डोम बने और पत्नी से पुत्र का शुल्क मांग लिया। शकुंतला दर-दर भटकीं, दुष्यंत सब भूल गए, मायावी कृष्ण को भील के एक बाण ने अंत तक पहुंचा दिया। दशरथ का तीर श्रवण कुमार को लगा। विधि के कारण ही शिव से ली गई सोने की लंका जली। सती की मृत्यु को शिव टाल न पाए, पुत्र दक्ष को ब्रह्मा समझा न पाए और मोहिनी रूप धरकर भी विष्णु ने राक्षस को अमृतपान करा दिया। अपने प्रारब्ध को न कंस टाल पाए, न रावण, न परीक्षित और न रामकृष्ण परमहंस।

शास्त्र गवाह हैं कि मानव अपने जन्म के साथ ही मृत्यु लिखवाकर लाता है। लाभ-हानि, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि के हाथ हैं। विधि परमात्मा के आधीन है। उसके लिखे मिटे न मिटाए। या धरती ही क्या, यह ब्रह्मांड ही क्या, यह संपूर्ण चराचर उस अनंत परमात्मा से बंधा है। वही हमें बनाता है, वही चलाता है, वही मिटाता है। वही लिखता है जिंदगी के पल, बरस और अंत। उस विधाता ने कर्मफल समय को सौंप दिया है। गीता में उसने साफ कह दिया—कर्म कर, फल मैं दूंगा। प्रारब्ध और पुरुषार्थ एक-दूसरे से बंधे हैं। गुरु वशिष्ठ ने जो कहा, वह संसार सार है। किसी भी क्षेत्र में हो, विधि-विधान पर भरोसा रखें।

सब से अधिक पढ़ी गई खबरें

ज़रूर पढ़ें

तोड़ना हर चक्रव्यूह...

तोड़ना हर चक्रव्यूह...

सचेत रहकर टालें घर के प्रदूषण का खतरा

सचेत रहकर टालें घर के प्रदूषण का खतरा

बेहतर जॉब के लिए अवसरों की दस्तक

बेहतर जॉब के लिए अवसरों की दस्तक

नकली माल की बिक्री पर सख्त उपभोक्ता आयोग

नकली माल की बिक्री पर सख्त उपभोक्ता आयोग

सबक ले रचें स्नेहिल रिश्तों का संसार

सबक ले रचें स्नेहिल रिश्तों का संसार

मुख्य समाचार

100 से ज्यादा शवों की पहचान का इंतजार, ओडिशा ने डीएनए सैंपलिंग शुरू की

100 से ज्यादा शवों की पहचान का इंतजार, ओडिशा ने डीएनए सैंपलिंग शुरू की

278 मृतकों में से 177 शवों की पहचान कर ली गई है

1984 के हमले के जख्मों ने सिखों को 'मजबूत' बनाया, न कि 'मजबूर' : जत्थेदार

1984 के हमले के जख्मों ने सिखों को 'मजबूत' बनाया, न कि 'मजबूर' : जत्थेदार

खालिस्तान समर्थकों ने नारेबाजी के बीच स्वर्ण मंदिर में ऑपरेश...