महात्मा गांधी रेल के तीसरे श्रेणी के डिब्बे में सफर कर रहे थे। उनके बराबर में बैठा एक आदमी पान चबा कर डिब्बे में जब थूकता था तो गांधी जी अखबार का पन्ना फाड़ कर उस थूक को पोंछकर ट्रेन से बाहर फेंक देते थे। वह आदमी बार-बार फर्श पर थूकता रहा और गांधी जी भी बार-बार उसे पोंछकर फेंकते रहे। गांधी जी ने उस आदमी को एक बार भी बुरा-भला नहीं कहा। जब गाड़ी स्टेशन पर पहुंची तो उस आदमी ने देखा कि गांधी जी का स्वागत करने तो भीड़ पहुंची हुई है, तो वह बहुत शर्मिंदा हुआ और क्षमा मांगने लगा। बापू बोले-क्षमा की तो कोई बात ही नहीं है भाई। तुम्हारा स्वभाव गंदगी करना था और मेरा स्वभाव साफ करना है। हो सके तो अपना स्वभाव बदलो। प्रस्तुति : योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।