Tribune
PT
Subscribe To Print Edition About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

जटोली में है उत्तरी भारत का  सबसे ऊंचा शिव मंदिर

यशपाल कपूर सोलन शहर से 10 किलोमीटर राजगढ़ रोड स्थित जटोली शिवमंदिर लोगों की आस्था का प्रतीक है। यहां सालभर शिवभक्तों का आना लगा रहता है। वर्ष 1978 में शिव मंदिर प्रबंधन कमेटी जटोली का गठन किया गया। जटोली शिव...

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

यशपाल कपूर

सोलन शहर से 10 किलोमीटर राजगढ़ रोड स्थित जटोली शिवमंदिर लोगों की आस्था का प्रतीक है। यहां सालभर शिवभक्तों का आना लगा रहता है। वर्ष 1978 में शिव मंदिर प्रबंधन कमेटी जटोली का गठन किया गया। जटोली शिव मंदिर की ऊंचाई 111 फीट है और यह मंदिर उत्तर भारत का सबसे सुंदर व ऊंचा मंदिर माना जाता है। यहां स्फटिक मणि का शिवलिंग भी स्थापित किया गया है। यहां 2 किलो सोने का छत्र स्थापित किया गया है।

Advertisement

1950 में हुई थी स्थापना

जटोली शिव मंदिर की स्थापना वर्ष 1950 में श्री श्री 1008 स्वामी कृष्णानंद परमहंस महाराज ने की थी। शिवालिक पहाड़ियों की गोद में स्थापित जटोली शिव मंदिर अपने अंदर कई तथ्य छुपाए हुए हैं। मंदिर की बनावट व सौंदर्य यहां आने वाले शिव भक्तों को सम्मोहित करता है। बताया जाता है कि जिस समय स्वामी कृष्णानंद परमहंस महाराज यहां आए तो इस स्थान पर घना जंगल हुआ करता था।

Advertisement

अद्भुत शिव गुफा

मंदिर की बगल में पत्थर की बड़ी शिला में बनी एक अद्भुत गुफा है जहां बैठकर स्वामी कृष्णानंद परमहंस महाराज ने कई वर्षों तक कठोर तपस्या की। इसी गुफा में स्वामी जी की प्रतिमा को दर्शनार्थ रखा गया है। गुफा में कुछ पल बैठने के बाद यहां आने वाले भक्तों को असीम शांति मिलती है।

क्या है मान्यता

मान्यता है कि जहां मंदिर का निर्माण किया गया है वहां दूर-दूर तक पीने के लिए पानी नहीं मिलता था। दूर-दराज से शिवभक्त यहां मंदिर में माथा टेकने आते थे, लेकिन उन्हें यहां पीने के पानी के लिए काफी भटकना पड़ता था। किंवदंती है कि स्वामी जी के कठोर तप से खुश होकर स्वयं मां गंगा ने यहां साक्षात‌् दर्शन दिए और इसके बाद यहां सूखी धरती से पानी की फुहार फूट पड़ी। आज जिस जलकुंड से शिवभक्त जल भरकर घर ले जाते हैं उस स्थान पर बैठकर स्वामी कृष्णानंद परमहंस महाराज ने लंबे समय तक घोर तप किया था। इस जलकुंड के पानी को धार्मिक अनुष्ठानों व घर की पवित्रता के लिए उत्तम माना गया है। तप करने के उपरांत स्वामी ने यहां आने वाले भक्तों को सनातन संस्कृति के अनुसार वेदों व पुराणों में वर्णित ज्ञान देना शुरू किया। इसके बाद स्वामी ने योगानंद आश्रम निर्माण के लिए सतरूप सेना का गठन किया। इस सेना का कार्य मंदिर की देखरेख करने के साथ-साथ यहां आने वाले भक्तों की सेवा करना था।

शिवरात्रि पर श्रद्धालु

यहां आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मंदिर कमेटी व प्रदेश सरकार द्वारा व्यापक कदम उठाए गए हैं। मंदिर में कई बड़े हॉल, स्नानघर आदि का निर्माण किया गया है। साल भर यहां शिवभक्तों का तांता लगा रहता है। खासकर महाशिवरात्रि पर्व पर यहां शिव उपासकों की इतनी भीड़ रहती है कि पांव रखने के लिए जगह तलाशनी मुश्किल हो जाती है। शिवरात्रि पर्व पर यहां हजारों शिवभक्त शीश नवाने पहुंचते हैं। महाराज के निर्देशानुसार आज भी हर रविवार को यहां भंडारा दिया जाता है। बताया जाता है कि 10 जुलाई, 1983 को श्री श्री 1008 स्वामी परमहंस महाराज ब्रह्मलीन हो गए थे। शास्त्रों में वर्णित है कि जब भी कोई महान सिद्ध पुरुष व पवित्र आत्मा ब्रह्मलीन होती है तो मेघ बरसते हैं। बताया जाता है कि जिस समय स्वामी परमहंस महाराज ने शरीर को छोड़ा तो आसमान बिल्कुल साफ था, लेकिन जैसे ही उन्हें उनके द्वारा निर्मित समाधि में ले जाने की तैयारियां हुई तो अचानक आसमान पर बादल उमड़ आए और झमाझम बरसने लगे। बड़े त्योहाराें या नववर्ष पर भी भारी संख्या में श्रद्धालु यहां मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं।

Advertisement
×