संत कबीरदास के पास प्रतिदिन कई जिज्ञासु आते थे। एक बार तीर्थयात्रा करते हुए कुछ साधु काशी पहुंचे और कबीर के दर्शन के लिए भी गए। वे चिलम सुलगाकर तंबाकू पीने लगे। कबीर ने साधु से पूछा, ‘तंबाकू के नशीले धुएं से तुम्हें क्या फायदा होता है?’ साधु ने कहा, ‘कुछ क्षण के लिए मस्ती में खो जाता हूं।’ कबीर ने कहा, ‘इस विषैले पदार्थ के कारण तुम अपने शरीर को जला रहे हो। यदि वास्तव में सच्ची मस्ती का अनुभव करना चाहते हो, तो राम नाम का नशा चढ़ाकर देखो। भगवान के नाम का नशा पवित्र करता है।’ साधु ने चिलम फेंककर भविष्य में नशा न करने का संकल्प लिया। एक बार एक व्यक्ति ने कबीरदास से पूछा, ‘बाबा, संसार के प्रपंच में फंसकर भगवान को कैसे याद किया जा सकता है?’ कबीर ने उत्तर दिया, ‘जैसे पत्नी पीहर में दूर रहते हुए भी पति के ध्यान में लीन रहती है, उसी प्रकार मनुष्य संसार के कार्यों में लगे रहते हुए भी भगवान के चिंतन में क्यों नहीं लगा रह सकता?’ प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी
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