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हरियाली अमावस्या में पौधरोपण की प्रेरणा

चेतनादित्य आलोक हिंदू संस्कृति में सावन का महीना वैसे ही विशेष धार्मिक-आध्यात्मिक महत्व का होता है, परंतु इस वर्ष यह शिव-भक्तों के लिए और भी अधिक महत्वपूर्ण अवसर बनकर आया है। दरअसल, 19 वर्षों के बाद यह संयोग बना है...

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चेतनादित्य आलोक

हिंदू संस्कृति में सावन का महीना वैसे ही विशेष धार्मिक-आध्यात्मिक महत्व का होता है, परंतु इस वर्ष यह शिव-भक्तों के लिए और भी अधिक महत्वपूर्ण अवसर बनकर आया है। दरअसल, 19 वर्षों के बाद यह संयोग बना है कि भगवान शिवशंकर ‘भोलेनाथ’ को अतिप्रिय इस ‘सावन’ महीने के साथ ‘पुरुषोत्तम मास’ लगा है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि इस बार सावन दो महीनों का होने वाला है, जिसमें आठ सोमवार होंगे यानी हिंदू मतावलंबियों को इस बार आठ सोमवारी-व्रत करने का अवसर प्राप्त हो सकेगा। पंचांग के अनुसार इस वर्ष पुरुषोत्तम मास की अवधि 18 जुलाई से 16 अगस्त तक रहेगी।

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पुरुषोत्तम मास में देवघर स्थित इस पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग पर जलार्पण करने वालों को अति-विशिष्ट फल की प्राप्ति होती है। वहीं सूर्य और चंद्रमा के अतिदुर्लभ संयोग बनने के कारण इस बार सावन महीने का दूसरा सोमवार (17 जुलाई) शिव-भक्तों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। यह व्रतियों को विशेष फल प्रदान करने वाला है, क्योंकि एक तो सोमवार, साथ ही अमावस्या एवं संक्रांति भी इस दिन साथ आ रही है। सोमवार को पड़ने वाली यह अमावस्या ‘सोमवती अमावस्या’ कहलाती है। यह संतान-सुख एवं धन-लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए उत्तम दिन है। वहीं हमारी संस्कृति में संक्रांति को तमाम शारीरिक रोगों, व्याधियों एवं अस्वस्थता से मुक्ति के लिए सर्वोत्तम अवसर माना जाता है। इसीलिए इस बार सावन महीने के दूसरे सोमवार को अति-विशिष्ट माना जा रहा है।

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संतान-सुख, आर्थिक उन्नति एवं शारीरिक अस्वस्थता से मुक्ति हेतु इस दिन मंदिर जाकर शिवलिंग पर गंगा जल से जलाभिषेक करना चाहिए। वैसे घर पर भी मिट्टी का पार्थिव शिवलिंग बनाकर शिव-आराधना की जा सकती है। संध्या समय पार्थिव शिवलिंग को किसी जलाशय में विसर्जित कर देना चाहिए। कहते हैं कि सोमवती अमावस्या को इस प्रकार अनुष्ठान करने से व्रत का दोगुना फल मिलता है। सोमवती अमावस्या को श्रावणी अमावस्या एवं हरियाली अमावस्या आदि कई अन्य नामों से भी जाना जाता है। सावन या श्रावण से यह ‘श्रावणी’ हुआ। वहीं इस मौसम में सर्वत्र फैली हरियाली के कारण इसे ‘हरियाली अमावस्या’ कहा गया। हरियाली अमावस्या का उत्सव भारत के उत्तरी राज्यों राजस्थान, उत्तर प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश में तो लोकप्रिय है ही, साथ ही यह देश के कई अन्य राज्यों में भी अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे गतारी अमावस्या, आंध्र प्रदेश में चुक्कल अमावस्या तथा उड़ीसा में इसे चितलगी अमावस्या कहा जाता है।

हरियाली अमावस्या के दिन पौधे लगाने एवं उनका पूजन करने का विशेष महत्व है। हमारे ऋषि-मुनियों ने पर्यावरण को संरक्षित करने की दृष्टि से ही पेड़-पौधों में ईश्वरीय रूपों को प्रतिबिंबित कर उनकी पूजा का विधान बनाया। भविष्य पुराण के अनुसार संतानहीन लोगों के लिए वृक्ष ही संतान होते हैं, क्योंकि जो मनुष्य पौधे लगाते हैं, उनके सभी लौकिक-पारलौकिक कार्य वृक्ष ही करते हैं। नारद पुराण के अनुसार इस दिन देवपूजा के अतिरिक्त पौधरोपण करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है।

हरियाली अमावस्या के दिन भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है तथा सुहागनों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। कुंडली में कालसर्प दोष, पितृदोष या शनि का प्रकोप होने पर हरियाली अमावस्या के दिन शिवलिंग पर जल या पंचामृत से अथवा रुद्राभिषेक करने से लाभ होता है। पितृदोष से पीड़ित लोगों के लिए हरियाली अमावस्या एक श्रेष्ठ अवसर होता है।

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