एक साहित्यकार और चित्रकार आपस में गहरे मित्र थे। साहित्यकार ने ख़ुशी पर एक बहुत सुन्दर कविता लिखी, जिसमें आसपास के वातावरण का मन को प्रफुल्लित कर देने वाला सुखद वर्णन था। कविता को बहुत सराहना मिली। साहित्यकार ने अपने मित्र से ख़ुशी का एक चित्र बनाने का अनुरोध किया। चित्रकार ने एक कच्चे मकान में टूटी-फूटी चारपाई पर लेटे परिवार का चित्र बनाया जिनके शरीर पर चिथड़ों जैसे कपड़े थे लेकिन सभी के चेहरों पर मुस्कान थी। कवि चित्र को देख कर भौंचक्का रह गया। उसने चौंक कर कहा- यह कैसी ख़ुशी है? इस पर चित्रकार ने अपने मित्र के कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा कि सुविधाओं में तो हर कोई खुश रह लेता है लेकिन असली ख़ुशी वही है जो अभावों में भी मुस्कुराती है।
प्रस्तुति : नीरोत्तमा शर्मा