एक परोपकारी संत का अंतिम समय आया तो यमराज ने अपने दूत को कहा कि संत को स्वर्ग ले आओ क्योंकि उन्होंने जीवन भर उपकार किए हैं। यमदूत संत को लेकर स्वर्ग की ओर चला तो रास्ते में नरक से चीख-पुकार की आवाज़ें आईं। संत ने दूत से पूछा कि ये दर्दभरी आवाज़ें कैसी हैं? दूत ने बताया कि जिन्होंने पाप किए हैं, वे नरक में यातनाएं भोग रहे हैं, लेकिन आप ने पुण्य किए हैं, इसलिए स्वर्ग ले जा रहा हूं। संत का हृदय द्रवित हो गया और उन्होंने कहा कि मैं स्वर्ग नहीं जाऊंगा, इनकी मुक्ति कैसे होगी? यमदूत ने कहा कि यदि कोई अपने ‘पुण्य’ इन्हें दे दे तो इन्हें नरक से मुक्ति मिल सकती है। यह सुनकर संत ने तुरंत कहा कि मैं अपने समस्त पुण्य इनकी मुक्ति के लिए दान देता हूं। मैं स्वयं नरक में रहने को तैयार हूं। तभी यमराज स्वयं आए और बोले, ‘आपकी यह परदुःखकातरता तो सबसे बड़ा पुण्य है, अतः आप भी इन सबके साथ स्वर्ग में ही रहेंगे।’ परोपकारी संत के साथ नरक की यातना से मुक्ति पाकर सब स्वर्ग चले गए।
प्रस्तुति : योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’