अन्य दो बातें उनसे, जो आस्तिक हैं। यदि आप आस्तिक हैं तो यह देखें कि आपकी आस्तिकता संस्कार मात्र पर टिकी हुई है या पूर्ण श्रद्धा और अगाध निष्ठा पर । यदि आपको भगवान के प्रति पूर्ण निष्ठा है तो आप उसकी सर्वत्र विद्यमानता के बावजूद कुछ काम ऐसे क्यों कर डालते हैं, जिनको करते हुए आपको लगता है कि आपको ऐसा करते किसी ने देखा नहीं है। किसी मनचाहे काम के न बनने पर भगवान को कोसने क्यों लगते हैं। कोई काम बिगड़ जाता है तो साधारणतया आपकी पहली प्रतिक्रिया यह होती है कि ‘हे ईश्वर! मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था, मेरे साथ ऐसा क्यों कर दिया?’ या यह कि ‘मैं तो सारी उम्र तेरी पूजा करता रहा हूं, मेरे साथ ऐसा क्यों कर दिया?’
जरा सोचिए कि आप कह क्या रहे हैंmdash; ‘मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था?’ आप बिगाड़ क्या सकते हैं उसका? आपके वश में होता तो अपने काम को ही बिगड़ने से बचा लेते। आप ललकार रहे हैं उस परम सत्ता को, जिसकी कृपा से आप जीवित हैं। जिसकी अनुकम्पा से आपको अगले श्वास मिल रहे हैं। या आप उससे पूछते हैं कि मैं तो सारी उम्र तेरी भक्ति करता रहा हूं, तूने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?’ भक्ति शुरू करने से पहले आपने कोई समझौता किया था उसके साथ? कोई एग्रिमेंट साइन किया था कि आप भक्ति करेंगे तो वह आपकी हर इच्छा पूर्ण किया करेगा, आपका कोई काम बिगड़ने नहीं देगा कभी ?
दिमाग लगाकर सोचिए आप बात किससे कर रहे हैं और किस प्रकार की भाषा का प्रयोग कर रहे हैं। आप उलाहना दे रहे हैं परमेश्वर को, जैसे वह आपका शरीक हो। आप एहसान जता रहे हैं कि आपने उसकी पूजा की है भक्ति की है। आपकी भाषा आपके भीतर का भेद खोल रही है कि आपकी सारी पूजा-अर्चना, श्रद्धा-भक्ति केवल स्वार्थ के लिए थी। इसी को आस्तिकता कहते हैं आप?
यदि आप वास्तव में आस्तिक हैं तो उस परम सत्ता के सामने सम्पूर्ण समर्पण कर दें। कोई शर्त न रखें। कोई सौदा न करें। स्वार्थवश याचना करते समय वास्तव में हम उसे यह समझा रहे होते हैं कि तुझे सृष्टि चलानी नहीं आती, मैं बताता हूं कैसे चलानी है। मुझे यह मुकदमा जितवा दे, मुझे पुत्र दे दे, मुझे नौकरी दिलवा दे, मेरा कारोबार बढ़ा दे, मुझे यह बना दे, वह बना दे इत्यादि।
अब भी याद आपको लगता है कि यही भक्ति है तो शौक से करते रहिए लेकिन अगर मेरी बात आपकी समझ में आ गई हो तो पहले कर रखी याचनाओं के लिए भी परमेश्वर से क्षमा मांगें और भविष्य में उसके प्रति अविचल श्रद्धा एवं सम्पूर्ण समर्पण भाव रखें।
– डॉ. न.