एक बार संत गिरिजानंद के पास एक जिज्ञासु आया। वह जीवन में आशानुरूप सफलता न मिलने से दुखी था। संत ने उसकी बात ध्यान से सुनी। उन्होंने उसके परिधान, ठाठ-बाट और नौकर-चाकरों को देखा। संत ने उसे चंदन की एक लकड़ी दी और कहा, ‘इसे इस संगमरमर की पट्टी पर घिसो।’ जिज्ञासु ने बहुत प्रयास किया, परंतु एक चुटकी चंदन भी नहीं निकला। फिर संत ने उसे एक खुरदुरा पत्थर दिया और कहा, ‘अब इस पर घिसो।’ जैसे ही उसने दो-तीन बार घिसा, चंदन की खुशबू फैल गई। संत मुस्कराए और बोले, ‘जीवन को इतना सुविधाजनक और मुलायम भी मत बना लो कि उसमें कोई घिसावट न हो। संघर्ष का खुरदुरा पत्थर ही जीवन को चंदन की तरह महकाता है।’ यह सुनकर जिज्ञासु की आंखें खुल गईं।
प्रस्तुति : पूनम पांडे
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