
चेतनादित्य आलोक
माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को संपूर्ण भारत में ‘वसंत पंचमी’ का पवित्र त्योहार आनंद और उल्लास के साथ मनाया जाता है। भारत के अतिरिक्त अन्य देशों में भी यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। यही नहीं, अन्य देशों में निवास करने वाले भारतवंशी भी इस त्योहार को अपने-अपने तरीके से श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाते हैं। इसीलिए इस तिथि को ‘वसंत पंचमी’ के नाम से भी जाना जाता है, जिसका एक नाम ‘श्रीपंचमी’ भी है। वैसे शास्त्रों में इसका वर्णन ‘ऋषि पंचमी’ के रूप में भी किया गया है। वसंत पंचमी को विद्या, ज्ञान, कला और संगीत की देवी भगवती सरस्वती तथा विद्या, बुद्धि और ज्ञान के देव गणेश भगवान की प्रतिमाएं स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। दरअसल, इसी दिन को अमित तेजस्विनी एवं अनंत गुणशालिनी माता सरस्वती का आविर्भाव हुआ था इसलिए इस दिन को सरस्वती पूजा का विशेष आयोजन किया जाता है। माता सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादिनी एवं वाग्देवी सहित अन्य अनेक नामों से पूजा जाता है।
ऋग्वेद में माता सरस्वती के असीम प्रभाव एवं महिमा का वर्णन मिलता है अर्थात् देवी सरस्वती परम चेतना हैं। इस रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है, उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। शास्त्रों में भगवती सरस्वती की पूजा-आराधना व्यक्तिगत रूप से करने का विधान सुनिश्चित किया गया है। इस त्योहार के अवसर पर घर का वातावरण बिल्कुल शुद्ध और सात्विक किंतु आनंद और उल्लास से परिपूर्ण रहता है। वसंत पंचमी के दिन ही सम्पूर्ण प्रकृति में मादक उल्लास व आनन्द का प्रसार और विस्तार करने वाले काम के देवता अनंग का आविर्भाव भी इसी दिन को हुआ था। इसीलिए इस दिन को कामदेव एवं देवी रति की पूजा भी किये जाने की परंपरा है। हालांकि वसंत पंचमी के अवसर पर भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा के बिना अनुयायियों द्वारा की गयीं सारी आराधनाएं अधूरी ही मानी जाती हैं।
वसंत पंचमी पर न केवल पीले रंग के वस्त्र पहने जाते हैं, बल्कि पूजा में चढ़ाये जाने वाले पुष्प, प्रसाद तथा अन्य खाद्य पदार्थों में भी पीले रंग की ही प्रधानता रहती है। इस दिन पीले बेर, संगरी, लड्डू एवं केसरयुक्त खीर के अतिरिक्त पीली बर्फी का प्रसाद चढ़ाया जाता है। वहीं पीले फूलों से पूजास्थल को सजाया जाता है। यह त्योहार साहित्यकारों, कलाकारों एवं विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। देश में पतंगबाजी का लोकप्रिय खेल भी वसंत पंचमी से ही शुरू होता है। गुजरात में तो इस खेल का विशेष आयोजन किया जाता है। हालांकि अन्य कई राज्यों में भी इस दिन पतंगबाजी का खेल बड़े स्तर पर आयोजित किया जाता है।
वसंत पंचमी के दिन मथुरा में दुर्वासा ऋषि मन्दिर में मेला लगता है। इस दिन भगवान का विशेष शृंगार किया जाता है तथा वृन्दावन के श्रीबांके बिहारी मन्दिर में वसंती-कक्ष भी खुलता है। यहां पर शाह जी के मंदिर का वसंती कमरा अत्यंत प्रसिद्ध है, जहां पर दर्शन के लिए बड़ी भीड़ उमड़ती है। मन्दिरों में वासंती भोग रखे जाते हैं और वसंत के राग भी गाये जाते हैं। वसंत पंचमी से ही होली का गाना भी शुरू हो जाता है।
वसंत पंचमी का पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व भी है। कथा अनुसार सीता हरण के बाद भगवान श्रीराम उनकी खोज करते हुए जिस दिन दण्डकारण्य स्थित माता शबरी की कुटिया पर पधारे थे, उस दिन माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि यानी वसंत पंचमी ही थी।
सब से अधिक पढ़ी गई खबरें
ज़रूर पढ़ें