स्वामी रामतीर्थ लाहौर के एक कॉलेज में गणित के प्रोफेसर थे। उनकी कलाई पर घड़ी बंधी हुई थी। जब भी कोई उनसे समय पूछता, तो वह मुस्कराते हुए उत्तर देते, ‘एक बजा है।’ एक बार उनके साथी ने गलत समय बताने पर उनकी घड़ी की ओर देखा। घड़ी में एक नहीं बजा था। ‘एक बजा है।’ इसका क्या रहस्य है? वह सोचने लगा। एक दिन अवसर मिलते ही उसने स्वामी जी से पूछा, ‘आप हर समय यह क्यों कहते हैं कि एक बजा है।’ स्वामी जी मुस्कुराये और बोले, ‘जरा गहरे में सोचो, क्या उस एक ही की यह लीला नहीं है। एक ने ही सारा विश्व रचा है। एक ही की लीला सारे विश्व में दृष्टिगोचर हो रही है। वह एक ही है, जिसे पाकर कुछ और पाने की इच्छा नहीं रहती।’ साथी को ‘एक बजा है’ का रहस्य समझ में आ चुका था।
प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी