कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुराणों में अतिविशेष माना गया है। मान्यता है कि क्षीरसागर में 4 माह शयन के बाद भगवान विष्णु इस दिन जागते हैं। इसलिए इसे देवउठनी, देवोत्थान, हरिप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। भगवान विष्णु के शयनकाल के 4 महीनों में विवाह जैसे मांगलिक कार्य नहीं किये जाते। देवोत्थान एकादशी पर भगवान हरि के जागने के बाद शुभ, मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। इसी दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है। गृहस्थियों के लिए हरि प्रबोधिनी एकादशी इस बार 25 नवंबर को है। वैष्णव इसे 26 नवंबर को मनाएंगे।
इस एकादशी पर भगवान विष्णु का पूजन और उनसे जागने का आह्वान किया जाता है।
इस दिन प्रातःकाल उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए। रात को घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाने चाहिए। घर के सभी सदस्यों को भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं का पूजन करना चाहिए।
पुराणों के अनुसार देवउठनी एकादशी का व्रत समस्त प्रकार के पाप, शोक, दुख, संकटों का नाश करने वाला होता है। यह दिन कुछ िवशेष उपायों के लिए भी उपयुक्त माना गया है-
- विवाह में आ रही बाधा दूर करने के लिए देवउठनी एकादशी के दिन प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में जाग जाएं। जब आकाश में तारे हों, तभी स्नान करें और लक्ष्मी-विष्णु की पूजा कर विष्णुसहस्रनाम के 7 पाठ करें। महालक्ष्मी और विष्णु को मिश्री का भोग लगाकर अपनी मनोकामना कहें।
- जिन पति-पत्नी के संबंधों कटुता हो, वे देवउठनी एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के मंत्र ओम् कृं कृष्णाय नमः की एक माला जाप करें। श्रीकृष्ण को माखन-मिश्री का भोग लगाएं।
- आर्थिक संकट और कर्ज से मुक्ति के लिए एकादशी का व्रत करें। शाम के समय पूजा स्थान में लाल रंग के ऊनी आसान पर बैठकर ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र की एक माला जाप करें। भगवान विष्णु को हलवे का भोग लगाएं और तुलसी में प्रतिदिन शाम के समय दीपक लगाना शुरू करें।
- जीवन में लगातार कोई न कोई परेशानी बनी हुई हो, संकट आ रहे हों तो एकादशी के दिन शाम के समय तुलसी विवाह संपन्न कराएं। किसी कन्या को भोजन करवाकर उसे वस्त्र, शृंगार का सामान भेंट दें।
- यह एकादशी सुख, सौभाग्य और उत्तम संतान प्रदान करने वाली एकादशी भी कही गई है। संभव हो तो पति-पत्नी दोनों यह व्रत रखें।
- देवउठनी एकादशी के दिन से शादियों का शुभारंभ हो जाता है। सबसे पहले तुलसी मां की पूजा होती है। धूमधाम से तुलसी विवाह का आयोजन होता है। तुलसी को विष्णुप्रिया भी कहा जाता है, इसलिए देव जब उठते हैं तो हरिवल्लभा तुलसी की प्रार्थना ही सुनते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी जी का विवाह शालिग्राम से किया जाता है। शालिग्राम भगवान विष्णु का ही एक स्वरूप है।
-मदन गुप्ता सपाटू