शुद्धता से फलित संकल्प
एकदा
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एक बार सत्यनगर के राजा और रानी अपने प्रमादी पुत्र के सुधार के लिए संत आनन्दधनजी के पास गए। संत ने उन्हें एक पन्ने पर लिखा हुआ दिया और कहा, ‘इसे आपके पुत्र के बाएं हाथ पर बांध देना, लेकिन शर्त यह है कि आप दोनों सदाचार, सत्य, अहिंसा और न्याय का पालन करेंगे। तभी इसका असर होगा।’ राजा और रानी ने व्रतों का पालन किया और धीरे-धीरे उनके पुत्र में सुधार होने लगा। कुछ समय बाद, वे संत के पास वापस आए और धन्यवाद दिया। संत ने कहा, ‘वह पन्ना लाओ।’ पन्ने पर लिखा था, ‘पुत्र होनहार हो, पुत्र अनुशासित हो।’ यह न तो यंत्र था, न मंत्र। असल में, जब अभिभावक का चरित्र शुद्ध होता है, तो उनका हर संकल्प स्वाभाविक रूप से फलित होता है।
प्रस्तुति : मुग्धा पांडे
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