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देव-पितरों के आशीष पाने का दिन

दर्श अमावस्या 30 नवंबर

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राजेंद्र कुमार शर्मा

दर्श अमावस्या दो शब्दों दर्श जिसका अर्थ है ‘प्रकट होना’ या दर्शन या दिखाई देना जबकि अमावस्या शब्द स्वयं दो शब्दों ‘वास्या’ या ठहरना’ तथा ‘अमा’ या ‘निकट’ को इंगित करता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की आखिरी अमावस्या को दर्श अमावस्या कहा जाता है। इस दिन चंद्र देव की पूजा के साथ पूर्वजों की भी पूजा की जाती है। जिस दिन चन्द्रमा केवल सूर्य को ‘दिखाई’ देता है और पृथ्वीवासियों को बिल्कुल भी दिखाई नहीं देता। मान्यता है कि महीने के शुक्ल पक्ष अर्थात‍् अंधेरे भरे आधे भाग में चन्द्रमा धीरे-धीरे सूर्य के निकट आता है और अमावस्या के दिन वह पूरी तरह से सूर्य के निकट होता है।

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किंवदंती है कि सूर्य उसे निगल लेता है जिसे अमावस्या कहा गया। अगले दिन, चंद्रमा को सूर्य द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है और वह धीरे धीरे अपने पूर्ण होने की ओर अग्रसर हो जाता है। इस पूरी प्रक्रिया को प्रतीकात्मक रूप से मृत्यु और पुनर्जन्म के रूप में देखा जा सकता है।

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दर्श अमावस्या की विशिष्टता

दर्श अमावस्या का धार्मिक और आध्यात्मिक दोनों ही रूपों में विशेष महत्व है। यह दिन पितरों को तर्पण और श्राद्ध करने के लिए विशेष माना जाता है। इस दिन पूजा-पाठ करने से पितृ दोष समाप्त होता है। इसके अलावा इस पवित्र दिन पर विधिपूर्वक पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

दर्श अमावस्या के दिन चंद्र देव की पूजा करने का विधान है। दर्श अमावस्या के दिन चंद्रमा की पूजा करने से हर इच्छा पूर्ण होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दर्श अमावस्या का संबंध चंद्रमा से है। जो मन का कारक होता है। इस दिन ध्यान, पूजा, जप-तप और दान करने से मानसिक शांति और आध्यात्मिक प्रगति प्राप्त होती है। इसे दर्श इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस दिन ध्यान द्वारा अपने इष्ट के दर्शन पाने का दिन है। इस दिन किए गए शुभ कार्य और पूजा-पाठ विशेष फलदायी होते हैं। यह दिन पितृ कृपा प्राप्ति का एक दुर्लभ अवसर उपलब्ध करवाता है।

दर्श अमावस्या के अनुष्ठान

इस दिन प्रातः काल गंगाजल युक्त पवित्र जल से स्नानादि से निवृत होकर, घर एवं पूजास्थल की सफाई आदि करके अनुष्ठान का आरंभ किया जाता है। घर में पूजा स्थल पर दीपक, धूप जलाकर पूजा करे। गरीबों, ब्राह्मणों को भोजन कराएं, वस्त्र और अन्न दान करें। इसके बाद पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म करें। इससे पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। इस पवित्र तिथि के दिन संभव हो तो किसी पवित्र नदी में स्नान करें और वहीं अपने पितरों को तर्पण भी करें। सूर्यास्त के समय पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाना और पितरों के नाम से दीपदान करना शुभ होता है। मान्यता है कि इस दिन हनुमान जी और शिव जी की पूजा करने का विशेष विधान है। इससे जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और घर में पितरों और देवों के आशीर्वाद से सुख समृद्धि प्राप्त होती है।

नवंबर माह में दर्श अमावस्या

इस बार 30 नवंबर, शनिवार को यह पर्व मनाया जाएगा। हिंदू पंचांग एवं ज्योतिषविदों के अनुसार अमावस्या तिथि पर पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातः 10:30 बजे से लेकर अगले दिन 1 दिसम्बर को 11:45 तक रहेगा। यह अनुष्ठान हमारी आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर, मानसिक शांति और समृद्धि प्रदान करता है।

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