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स्वतंत्रता की प्रतिबद्धता

एकदा

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भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान एक बार बम केस के संबंध में कलकत्ता के एक पुलिस कमिश्नर ने अचानक अरविंद घोष के निवास पर धावा बोला। पुलिस कमिश्नर यह देखकर स्तब्ध रह गया कि कमरे में चारों ओर किताबें बिखरी पड़ी थीं, सोने के लिए जमीन पर एक चटाई बिछी पड़ी थी, खाने में थोड़े बिस्किट रखे थे, और नारियल के रेशे से बुनी एक खाट पड़ी थी। पूछताछ के दौरान प्राप्त उत्तरों से अरविंद घोष की विद्वता से संतुष्ट होकर पुलिस कमिश्नर वापस लौट गया। अरविंद मुस्कराते हुए मन ही मन बोल रहे थे कि अंग्रेजी शासन को भगाने का मेरा यह साधारण माहौल भी शास्त्र के कार्य के रूप में सहायक होगा, और मेरा देश निश्चित रूप से स्वतंत्र होगा। ब्रिटिश स्कूल और कॉलेज की शिक्षा से संपन्न व्यक्ति अरविंद घोष भारत को स्वतंत्र कराने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध थे। उनकी यह निष्ठा और प्रतिबद्धता कालांतर में भारत की स्वतंत्रता के रूप में फलीभूत हुई।

प्रस्तुति : बनीसिंह जांगड़ा

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