
एक बार गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ मगध राज्य में विहार कर रहे थे। वे रात्रि विश्राम के लिए एक गांव में पहुंचे। ग्रामीण एक अंगुलीमाल नामक दस्यु से डरे हुए थे जो निकट के जंगल में रहता था। वह लोगों को बेरहमी से मारता था और उनकी उंगलियां काटकर माला में पिरोकर पहनता था। तदन्तर बुद्ध उससे मिलने अकेले ही जंगल की ओर निकल पड़े। संन्यासी को अकेला जाते देख अंगुलीमाल ने पीछे से पुकारा, ‘ठहरो!’ बुद्ध बेफिक्र होकर चलते रहे। अंगुलीमाल ने अट्टहास करते हुए फिर जोर से कहा, ‘शायद तुम्हें मेरी ताकत का अंदाजा नहीं।’ बुद्ध बोले, ‘यदि तू वास्तव में ताकतवर है तो उस पेड़ की दस पत्तियां तोड़कर लाओ।’ अंगुलीमाल पत्तियां तोड़ कर तुरंत बुद्ध के सामने आ खड़ा हुआ। तब संन्यासी ने कहा, ‘इन पत्तियों को जहां से तोड़ा है वहीं वापस जोड़ दो।’ अंगुलीमाल बोला, ‘यह कैसे हो सकता है?’ बुद्ध ने कहा, ‘असली ताकतवर तो वह है जो टूटे को वापस जोड़ दे। तू इंसान का धड़ अलग कर सकता है, परन्तु उसे वापस नहीं जोड़ सकता है।’ यह सुनकर अंगुलीमाल के चेहरे के तोते उड़ गए। बुद्ध के व्यक्तित्व से अभिभूत होकर वह निरुत्तर हो गया। उसका अंतर्मन जाग गया और बुद्ध के चरणों में पड़कर उसे अपनी शरण में लेने का आग्रह किया। बुद्ध ने अंगुलीमाल को अपना शिष्य बना लिया जो बाद में संत बन गया।
प्रस्तुति : डॉ. जयभगवान शर्मा
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