बेड़ियों से मुक्त होंगे ‘भगवान’ बिरसा मुंडा
रांची। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले भगवान बिरसा मुंडा आजाद भारत में बेड़ी मुक्त दिखेंगे। बिरसा मुंडा की ऐसी तस्वीर और मूर्ति जिनके हाथों में बेड़ी लगी दिखाई गई हो और स्थापित हो, उसे बेड़ी रहित करने का आदेश दिया गया है। यह संकल्प तत्काल प्रभाव से लागू होगा। सरकार ने माना है कि बेड़ीयुक्त भगवान बिरसा की प्रतिमा बंधन का प्रतीक है। इससे युवा पीढ़ी पर गलत प्रभाव पड़ सकता है। पर्यटन, कला संस्कृति, खेलकूद और युवा कार्य विभाग के इस प्रस्ताव को मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मंजूरी दे दी।
झारखंड के आदिवासी दम्पति सुगना और करमी के घर 15 नवंबर 1875 को जन्मे बिरसा मुंडा ने हिंदू और ईसाई धर्म का बारीकी से अध्ययन किया। सामाजिक कुरीतियां दूर करने में वह जुट गए। इससे आदिवासियों में जागरुकता आई। पाखंडी झाड़-फूंक करने वालों की दुकानदारी भी ठप हो गई। उन्होंने आदिवासियों के आर्थिक स्तर में सुधार के प्रयास किए, ताकि समाज को जमींदारों के शोषण से मुक्ति मिल सके।
आदिवासी शोषण के विरुद्ध संगठित होने लगे। बिरसा मुंडा ने उनके नेतृत्व की कमान संभाली। आदिवासियों ने ‘बेगारी प्रथा’ के विरुद्ध आंदोलन किया। परिणामस्वरूप जमींदारों और जागीरदारों के घरों, खेतों और वन की भूमि पर कार्य रुक गया। बिरसा मुंडा ने फिर अंग्रेजी हुकूमत की ज्यादतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की। ब्रिटिश हुकूमत ने बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर बेड़ियों में जकड़ा और जेल में डाल दिया। वहां अंग्रेजों ने उन्हें धीमा जहर दिया था। इस कारण वे नौ जून 1900 को शहीद हो गए।
कौन हैं बिरसा मुंडा
भारतीय इतिहास में बिरसा मुंडा एक ऐसे नायक थे, जिन्होंने झारखंड में अपने क्रांतिकारी चिंतन से उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आदिवासी समाज की दशा और दिशा बदलने के लिए काम किया। काले कानूनों को चुनौती देकर बर्बर ब्रिटिश साम्राज्य को सांसत में डाल दिया। झारखंड में उन्हें भगवान का दर्जा दिया जाता है।