मानवीय संवेदनाओं की तस्वीर उतारने के लिए अब तक गुरुदत्त को ही सिद्धहस्त माना जाता था लेकिन ‘दो बदन’ देखने के बाद दर्शकों को अहसास हुआ कि संवेदनाओं को परदे पर हूबहू उतारने में श्याम खोसला का जवाब नहीं। वह भी मनोज कुमार जैसे हीरो से जो अब तक राष्ट्रभक्ति की फिल्मों को हिट कराने के लिए जाने जाते थे। लेकिन इस फिल्म से उनका नया अवतार हुआ एक रोमांटिक हीरो के रूप में।
‘शहीद’ फिल्म के बाद ‘दो बदन’ फिल्म ने मनोज कुमार पर रोमांटिक हीरो का लेबल चस्पां किया। पाठकों को तो मालूम ही होगा कि राज खोसला देवानंद के शिष्य रह चुके हैं। ‘दो बदन’ से पूर्व वह ‘वो कौन थी’ सरीखी सस्पेंस जोनर की फिल्में बना चुके थे। दिलचस्प बात यह है कि ‘वो कौन थी’ की पटकथा मनोज कुमार ने ही संवारी थी। हालांकि, परदे पर लेखक का नाम ध्रुव चटर्जी का ही उभरता है। उसके बाद राज खोसला आंख मूंद कर मनोज कुमार पर विश्वास करने लगे। शायद इतना यकीन उन्होंने अपने गुरु देवानंद पर भी नहीं किया। 1965 में मनोज कुमार ने राज खोसला पर दबाव डाला कि वह ‘दीदार’ फिल्म की कहानी को पर्दे पर दोबारा मूर्त करें और ‘दो बदन’ के निर्माण का सिलसिला शुरू भी हो गया। इस फिल्म में मनोज कुमार के साथ थीं आशा पारेख और खूबसूरत तारिका सिम्मी ग्रेवाल और एक्टिंग के शाहकार प्राण। क्या सिनेमेटोग्राफी थी? लाजवाब! और निर्देशन के अलावा जिस बात ने आज तक इस फिल्म को दर्शकों की प्रिय फिल्मों में से एक बनाकर रखा, वह है रवि का संगीत। फिल्म फेयर के सर्वोत्तम पुरस्कार तो संगीत के लिए ही थे। ‘जब चली ठंडी हवा, नसीब में जिसके जो लिखा था और लो आ गयी उनकी याद’-साठ के दशक के इर्दगिर्द जन्में लोगों को पूछकर देखो, उनके पसंदीदा
गीतों में ये गीत आज भी शुमार हैं। ‘दो बदन’ की कहानी बड़ी साधारण सी है-त्रिकोणीय प्रेम और साथ ही ट्रैजेडी का तड़का।
विकास बने मनोज कुमार गरीब घर का लड़का है जो कॉलेज में पढ़ता है जहां वह अपनी सहपाठी आशा (आशा पारेख) को दिल दे बैठता है लेकिन आशा के पिता दरअसल अपने दोस्त के बेटे अश्विनी (प्राण) से उसकी शादी करना चाहते हैं। दोनों के प्यार से खफा अश्विनी विकास की हत्या की साजिश रचता है, जिसमें विकास की आंखों की ज्योति चली जाती है। वह जिस डॉक्टर से आंखों का इलाज करवाता है वह महिला डॉक्टर सिम्मी ग्रेवाल (डॉ. अजली) है। उधर आशा से अश्विनी की जबरदस्ती शादी हो जाती है लेकिन वह अपने पति से वैवाहिक संबंध रखने से इनकार कर देती है। वह बीमार रहने लगती है। वह माफी मांगता है लेकिन तब तक काफी देरी हो चुकी होती है क्योंकि दोनों जान देकर एक-दूसरे के प्रति अपना प्यार दर्शाते हैं। रोमांटिक होने के बावजूद यह कहानी इतनी त्रासदीय है कि हर दर्शक की सिनेमा घर से बाहर आते वक्त आंख गीली होती है।
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