
जानकी नवमी आज
गोपाल जी गुप्त वाल्मीकि रामायण के अनुसार रामजन्म के सात वर्ष एक माह बाद वैशाख शुक्ल नवमी को राजा जनक द्वारा खेत में, हल की नोक (सिता) के स्पर्श से एक कन्या मिली जिसे उन्होंने सीता नाम दिया। जनक दुलारी होने से जानकी, मिथिलावासी होने से मिथिलेश कुमारी नाम भी उन्हें मिले। उपनिषदों—वैदिक वाङ्मय में उनकी अलौकिकता व महिमा का उल्लेख है, जहां उन्हें शक्तिस्वरूपा कहा गया। ऋग्वेद में वह असुर संहारिणी, कल्याणकत्र्री, सीतोपनिषद में मूल प्रकृति, विष्णु सान्निध्या, रामतापनीयोपनिषद में आनन्द दायिनी, आदिशक्ति, स्थिति, उत्पत्ति, संहारकारिणी, आर्ष ग्रंथों में सर्ववेदमयी, देवमयी, लोकमयी तथा इच्छा, क्रिया, ज्ञान की संगमन हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने उन्हें सर्वक्लेशहारिणी, उद्भव, स्थिति, संहारकारिणी, राम वल्लभा कहा है। पद्मपुराण उन्हें जगतमाता, अध्यात्म रामायण एकमात्र सत्य, योगमाया का साक्षात् स्वरूप और महारामायण समस्त शक्तियों की स्रोत तथा मुक्तिदायिनी कह उनकी आराधना करता है। रामायण तथा रामचरितमानस के बालकाण्ड में सीताजी के उद्भवकारिणी रूप का दर्शन होता है एवं उनके विवाह तक सम्पूर्ण आकर्षण सीता में समाहित है जहां सम्पूर्ण क्रिया उनके ऐश्वर्य को रूपायित करती है। अयोध्याकाण्ड से अरण्यकाण्ड तक वह स्थितिकारिणी (पालनकर्ता) हैं, जिसमें वह करुणा-क्षमा की मूर्ति हैं । वह कालरात्रि बन निशाचर कुल में प्रविष्ट हो उनके विनाश का मूल बनती हैं। यद्यपि तुलसी ने सीताजी के मात्र कन्या तथा पत्नी रूपों को दर्शाया है तथापि वाल्मीकि ने उनके मातृस्वरूप को भी प्रदर्शित कर उनमें वात्सल्य एवं स्नेह को भी दिखलाया है। श्रीमद्देवीभागवत पुराण में उनके शक्ति रूप का दर्शन मिलता है जबकि तत्व-संग्रह रामायण में वह महाशक्ति, आद्याशक्ति, शक्तिसमन्विता रूप में दिखती हैं। संत एकनाथ कृत भावार्थ रामायण में वह प्रत्यक्ष रूप से दैत्य मूलकासुर का संहार करती हैं। आनन्द रामायण में उनके द्वारा अनेक असुरों का वध होता है जबकि अद्भुत रामायण में वह सहस्रस्कंध रावण का वध करने के लिये रौद्ररूप धारण करती हैं तथा ताण्डव नृत्य प्रारंभ कर देती हैं जिससे महाकाल तक कांप उठते हैं। तब श्रीराम को स्वयं उनकी स्तुति 'जानकी सहस्रनाम' द्वारा करनी पड़ती है जिससे वह शान्त होती हैं। नि:संदेह सीता के शक्तिरूप का वर्णन विभिन्न वाङ्मयों में उनके अनजाने पक्ष से लोकमानस की चमत्कृत करता है।
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