कंगना रणौत ने संसद में जया बच्चन द्वारा की गयी ‘थाली’ संबंधी टिप्पणी पर बुधवार को कड़ी प्रतिक्रिया दी और दावा किया कि उन्हें तो थाली में सजाकर कुछ नहीं मिला। मंगलवार को बच्चन ने राज्यसभा में बोले हुए भाजपा लोकसभा सदस्य रवि किशन और रणौत द्वारा दिये गये बयानों का हवाला देते हुए कहा था, ‘जिन लोगों ने इस उद्योग में नाम कमाया, उन्होंने इसे गटर (गंदा नाला) कहा है। मैं इससे पूरी तरह असहमत हूं… मुझे वाकई बड़ा असहज लगा और शर्मिंदगी महसूस हुई जब कल लोकसभा में हमारे एक सदस्य, जो इसी उद्योग से आते हैं, ने बोला। मैं नाम नहीं ले रही। यह शर्मनाक है। …जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद करते हैं। गलत बात है।’ रणौत ने मंगलवार को बच्चन की निंदा की और बुधवार को भी उन्होंने उन पर हमला जारी रखा। रणौत ने कहा, ‘किस थाली की बात आप कर रही हैं, जया जी? एक ऐसी थाली दी गयी जिसमें 2 मिनट की भूमिका, आईटम नंबर एवं रोमांटिक सीन की पेशकश थी और वो भी हीरो के साथ सोने के बाद।’
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।