सरस्वती रमेश
अंकित और देबू आठवीं क्लास में पढ़ते थे। दोनों पढ़ने में बहुत तेज थे। टीचर का चहेता बनने के लिए दोनों में होड़ लगी रहती। इसलिए दोनों रोज टीचर द्वारा दिए गए होमवर्क को अच्छे से याद करके आते थे। जब टीचर क्लास में प्रश्न पूछते तो दोनों ही उत्तर देने को आतुर रहते। टीचर दोनों छात्रों की लगन देखकर उनकी प्रशंसा करते।
एक दिन टीचर ने बच्चों से कहा, ‘बच्चो! मंडे को तुम्हारा मैथ का टेस्ट होगा। सब लोग अपनी तैयारी अच्छे से कर लो।’ मैथ देबू का प्रिय सब्जेक्ट था। लेकिन अंकित मैथ में कुछ कमजोर था। फिर भी मेहनत करके हर बार वह अच्छे मार्क्स ले आता था। इस बार भी वह टेस्ट की तैयारी में लग गया। देबू ने भी सबकुछ अच्छे से रिवाइज कर लिया। मंडे को सारे बच्चे स्कूल पहुंचे। सब ने अच्छे से टेस्ट दिया। अंकित के क्लास में सबसे ज्यादा मार्क्स आये। इस पर देबू को थोड़ी ईर्ष्या हो गई। उस दिन से देबू ने अंकित के पास बैठना छोड़ दिया। उससे बात करना भी बंद कर दिया। अंकित बात करने की कोशिश करता तो वह ठीक से जवाब न देता।
कुछ दिन बाद ही स्कूल में रेस कॉम्पिटिशन होना था। पूरे ग्राउंड के चार राउंड लगाने थे। दूसरे बच्चों के साथ देबू और अंकित ने भी जमकर तैयारी की। देबू ने सोच रखा था इस रेस को जीतने के लिए पूरा दम लगा देगा। सीटी बजते ही सारे बच्चे दौड़ पड़े। कुछ तो पहले ही तेज दौड़ गए और दो राउंड पूूूरा होते-होते ही हांफने लगे। लेकिन देबू और अंकित पहले पहल आराम से दौड़ते रहे। जब तीसरा राउंड पूरा हो गया तो दोनों ने स्पीड तेज कर दी। देबू सबसे आगे था। अंकित दूसरे नंबर पर। चौथा और आखिरी राउंड पूरा होने ही वाला था कि अचानक देबू के बाएं पैर के जूते का लेस खुल गया। लेस दाएं पैर से दब गया और देबू फंस कर गिर पड़ा। पीछे से आ रहा अंकित यह सब देख रहा था। देबू के गिर जाने के बाद अंकित की जीत लगभग तय थी। लेकिन दौड़ते-दौड़ते अंकित अचानक रुक गया। उसने जल्दी से देबू को उठाया और उसके जूते के फीते बांधे। अब तक पीछे दौड़ रहे बच्चे अंकित और देबू के काफी करीब आ चुके थे। अंकित ने देबू से कहा, ‘देबू भाग।’ देबू पूरा दम लगा कर दौड़ पड़ा। उसके पीछे अंकित भी दौड़ा। देबू ने फिनिश लाइन क्रॉस कर ली। उसके पीछे अंकित भी आ गया।
रेस पूरी करते ही देबू अंकित के पास आया और कहा, ‘अंकित तुम मुझे उठाने क्यों आए, जबकि तुम आसानी से जीत सकते थे।’ इस पर अंकित ने कहा, ‘मैं तुम्हें अपना दोस्त मानता हूं। जब दोस्त मुसीबत में हो तो उसकी मदद किए बिना मैं आगे कैसे बढ़ सकता था।’ अंकित की यह बात सुन देबू को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसे पछतावा हुआ कि अंकित जैसे अच्छे दोस्त से ईर्ष्या की। उसने फौरन माफी मांगी और कहा, ‘अंकित, आज से तुम ही मेरे सच्चे दोस्त हो।’