भिवानी, 11 जुलाई (हप्र)
भिवानी में बरसात न होने से खतरे में कपास की फसल। -हप्र
मानसून की निर्धारित तिथि बीतने 12 दिन बाद भी क्षेत्र में झमाझम बरसात के इंतजार में अब किसानों के चेहरों पर चिंता की लकीरें स्पष्ट दिखाई देने लगी हैं। पानी की कमी के चलते खेत खलिहान में खड़ी कपास, बाजरा, ज्वार व धान की फसलें सूखने लगी हैं। कपास पर तो गर्मी का इतना प्रकोप हैं कि इसमें अब सफेद मक्खी नामक बीमारी भी आने लगी है।
क्षेत्र में आमतौर पर 1 जुलाई से मानसून आ जाता है। किसानों द्वारा 1 जून से 15 जून तक आमतौर पर कपास की बीजाई की जाती है ताकि बरसात समय आने से इसे पर्याप्त मात्रा में नमी मिले और पौधे बड़े हो सके। बाजरे की फसल तो बरसात आने ठीक एक सप्ताह पहले उगाई जाती है ताकि बरसात का पानी बाजरे को अंकुरित होने में मदद करे। यही स्थिति धान की है यूं तो धान की फसल की रोपाई बरसाती पानी में की जाती है लेकिन इस उम्मीद में कई किसानों ने अपने खेतों में धान की फसल भी उगा दी है, लेकिन अब इस फसल को बचाना भी मुश्किल हो रहा है।
क्षेत्र में सर्वाधिक फसल यानि 90 हजार एकड़ इलाके में कपास उगाई गई है। कपास के पौधे एक डेढ़ फुट तक ऊंचाई भी ग्रहण कर चुके हैं लेकिन अब इन्हें पानी की बहुत ज्यादा जरूरत है। भू-जल स्तर अत्यधिक नीचा अथवा खारा होने के कारण किसानों की परेशानी और भी अधिक बढ़ गई है। राजस्थान की सीमा से सटे इस ईलाकें में नहरी पानी की कमी तो पूरे 12 माह बने रहती है। बरसात में देरी होने से किसानों की बाजरे की फसल भी लगभग तबाह हो गई है और किसानों का बीजाई का खर्चा भी जेब से भरना पड़ रहा है।
हो सकता है भारी नुकसान : कृषि विशेषज्ञ
कृषि विशेषज्ञ डॉ. सतबीर शर्मा का कहना है कि यदि आने वाले एक सप्ताह के भीतर यदि बारिश नहीं हुई तो किसानों की कपास, बाजरा, धान आदि फसलों में भारी नुकसान हो सकता है। उन्होंने उम्मीद व्यक्त की कि आने वाले 4 या 5 दिन में बरसात जरूर होगी।