हिंदी फीचर फिल्म : फंटूश
शारा
वर्ष 1956 में रिलीज ‘फंटूश’ नवकेतन फिल्म्ज प्रोडक्शन हाउस की चेतन आनंद द्वारा निर्देशित की गयी अंतिम फिल्म थी। उसके बाद उन्होंने हिमालय फिल्म्ज नामक अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू कर लिया था, जिस बैनर ने हकीकत, हीर रांझा, हंसते जख्म जैसी फिल्में बॉलीवुड को दीं। हिमालय प्रोडक्शन हाउस की तमाम फिल्मों की नायिका प्रिया राजवंश ही हुआ करती थीं क्योंकि ‘हकीकत’ फिल्म के निर्माण के दौरान ही चेतन आनंद से प्रिया राजवंश की प्रेम की पींगें पड़नी शुरू हो गयी थीं। उमा आनंद से तब तक संबंध विच्छेद हो गया था। हालांकि, यह कानूनन तलाक नहीं था। उमा आनंद उनकी पहली फिल्म नीचा नगर की हीरोइन थीं। वह एक्ट्रेस होने के साथ-साथ साठ के दशक की जानी-मानी पत्रकार भी रह चुकी हैं। वह चेतन आनंद के दो बेटों केतन आनंद और विवेक आनंद की मां थीं, जिन पर प्रिया राजवंश की हत्या का आरोप लगा था और जेल भी हुई थी। बहरहाल, ‘फंटूश’ उस साल की हिट फिल्मों में नौवें स्थान पर थी, जिसने नवकेतन फिल्म्ज को मालामाल किया। फिल्म का टाइटल ऐसा था कि दर्शक सोचते थे कि चलो देख आते हैं कि फंटूश क्या होता है? देवानंद फिल्म में फंटूश बने हैं। दरअसल, फंटूश स्कॉटिश लफ्ज है, जिसका अर्थ है अलमस्त टपोरी, कुछ-कुछ पगला-सा। इस नाम से बाद में सन् 2003 में भी फिल्म रिलीज हुई, जिसे एफयूएन2एसएच लिखा गया। सिरफिरा फंटूश अंग्रेजी फिल्मों का हीरो ज्यादा लगता है बनिस्बत हिन्दी फिल्मों के। इसमें हीरोइन की भूमिका अदा की शीला रमानी ने, जो बाद की फिल्मों में वैम्प के रोल में ज्यादा दिखीं। टैक्सी ड्राइवर फिल्म में दर्शक उसके किरदार को नहीं भूले होंगे। दरअसल, पचास से सत्तर के दशक तक उनके नाम का फिल्मों में काफी सिक्का चलता था और आनंद बंधु तो उसके वैसे भी दीवाने थे। ‘दुखी मन मेरे मान मेरा कहना’ किशोर कुमार का गाया गीत उस ज़माने में ‘बिनाका गीत माला’ में टॉप पर बजा करता था। दरअसल, यह ‘फंटूश’ फिल्म ही थी, जिसके निर्माण के दौरान देवानंद, किशोर कुमार और एस.डी. बर्मन की तिकड़ी बनी, जिन्होंने बाद में नवकेतन द्वारा प्रोड्यूस फिल्में, संगीत की वजह से हिट से सुपरहिट बनाईं। फिर यह सिलसिला एस.डी. बर्मन के बेटे आर.डी. बर्मन ने भी बनाए रखा। जब एस.डी. बर्मन फंटूश के लिए संगीत तैयार कर रहे थे तो आर.डी. बर्मन यानी पंचम दा की उम्र महज 9 साल की थी और 9 साल की उम्र में ही उन्होंने इस चर्चित फिल्म के एक गीत ‘ऐ मेरी टोपी पलट के आ’ के लिए अपना संगीत दिया। इस गीत को शूट करने के पीछे भी दिलचस्प कहानी है। जब इस गीत की शूटिंग होनी थी, उस दिन चेतन आनंद गंभीर रूप से बीमार थे, नतीजतन शूटिंग उनके सबसे छोटे भाई विजय आनंद उर्फ गोल्डी ने की। गोल्डी उस समय बहुत छोटे थे और अभी फिल्मों का ककहरा ही सीख रहे थे। कभी-कभी इस फिल्म के केंद्रीय पात्र रामलाल फंटूश को देखकर चार्ली चैपलिन की भी याद आ जाती है, जो बड़े से बड़े गम अपने मसखरेपन से उड़ा देते थे। तब भ्रम होता है कि इस भूमिका की स्वीकारोक्ति के पीछे देवानंद की राजकपूर से होड़ ही न हो क्योंकि ऐसी भूमिकाएं राजकपूर ज्यादा संजीदगी से अदा करते थे। कहानी रामलाल फंटूश के इर्दगिर्द घूमती है, जिसकी मां और बहन की असामयिक मौत हो जाती है। रामलाल यह गम बर्दाश्त नहीं कर पाता और दिमागी संतुलन खो देता है। पागल समझकर उसे पागलखाने में दाखिल करा दिया जाता है। कई साल पागलखाने में रहने के बाद जब वह घर लौटता है तो उसे दुनियादारी का पता चलता है। जेल से बाहर उसकी मुलाकात के.एन. सिंह से हो जाती है। सिर्फ के.एन. सिंह ही रामलाल को दुनियादारी का पाठ पढ़ाने के लिए काफी है। वह उसे पैसा आसानी से कमाने के तौर-तरीके समझाता है। वह उसे बताता है कि अगर वह दुनिया के लिए मर जाये तो उसके बाद जो पैसा मिलेगा, उसे बांट लेंगे। इसके लिए वह उसका जीवन बीमा करवा देता है। फंटूश मरने के लिए तैयार भी हो जाता है लेकिन उससे पहले वह के.एन. सिंह की बेटी शीला रमानी से प्यार कर बैठता है। इसीलिए मरना कैंसिल हो जाता है। अब शीला रमानी से उसका प्यार, पींगें, गीत, डांस—इसका आनंद तो फिल्म देखने पर मिलेगा, इसलिए फिल्म देख डालिये क्योंकि मौसम का भी तकाजा है और फिल्म भी अच्छी है।
निर्माण टीम
प्रोड्यूसर : देवानंद
निर्देशक : चेतन आनंद
सिनेमैटोग्राफी : श्याम सुंदर मलिक
संगीतकार : एस.डी. बर्मन, सहायक आर.डी. बर्मन
गीतकार : रमेश शास्त्री, जलाल मलिहाबादी
सितारे : देवानंद, शीला रमानी, कुमकुम, लीला चिटनिस, के.एन. सिंह, जगदीश राज आदि।
गीत
दुखी मन मेरे : किशोर कुमार
वो देखें तो उनकी : आशा भोसले, किशोर कुमार
हमने किसी पे डोरे : आशा भोसले, किशोर कुमार
ऐ जानी जीने में क्या : आशा भोसले
ऐ मेरी टोपी पलट के आ : किशोर कुमार
देने वाला जब भी देता : आशा भोसले, किशोर कुमार
फूल गेंदवा न मारो : आशा भोसले