पुष्परंजन
हाफिज सईद
पाकिस्तान के तानाशाह जनरल जियाउल हक ने सबसे पहले हाफिज सईद के अंदर की आग को पहचाना था। उस समय हाफिज सईद लाहौर के यूनिवर्सिटी आॅफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलाॅजी में इस्लामिक स्टडीज का प्रोफेसर था। 1980 के दशक में हाफिज सईद को सऊदी अरब इस्लामिक शिक्षा के लिए भेजा गया, जहां उसकी मुलाकात मुफ्ती शेख अब्दुल अजीज बिन बाज और फिलस्तीनी स्काॅलर अब्दुल्ला उज्जम से हुई। अब्दुल्ला उज्जम ’जमातुल दावा वल इरशाद’ नामक संस्था चला रहा था, जिससे हाफिज भी जुड़ गया। 1980 के उत्तरार्द्ध का वह दौर था, जब अफगा़निस्तान में सोवियत ताकतों को शिकस्त देने के लिए कश्मीरी लड़ाके भी जुटने लगे थे। हाफिज को इस तरह की आग को सुलगाने में अपना मुस्तकबिल दिख रहा था। ‘जमातुल दावा-वल इरशाद‘ की स्थापना का मकसद सोवियत सैनिकों के खिलाफ जिहादियों को तैयार करना था। तब अमेरिका और ब्रिटेन को इस पर आपत्ति नहीं हुई। इन दोनों देशों में जिहाद के लिए जिन नवयुवकों को तैयार करने के लिए हाफिज सईद का भाषण कराया जाता था, उसके लिए सीआईए की स्वीकृति रही थी। 1990 के बाद जब सोवियत सैनिक अफगानिस्तान से निकल गये तो हाफिज सईद ने अपने मिशन को कश्मीर की ओर मोड़ दिया। उन्हीं दिनों लश्क-ए-तैयबा की स्थापना की घोषणा की। तब भी अमेरिका को कोई आपत्ति नहीं हुई। ओसामा बिन लादेन पर अमेरिका ने 25 मिलियन डाॅलर का इनाम घोषित किया हुआ था। अल कायदा के नंबर टू अयमान अल जवाहिरी, नंबर थ्री अबू मुसाबी अल ज़रकाबी के सिर पर भी वही इनाम था। 25 मिलियन डाॅलर वाले इनामी सद्दाम हुसैन भी थे। सद्दाम के दोनों बेटे उदय और कसय हुसैन 15 मिलियन डाॅलर के इनामी थे। ये सभी ढाई और डेढ़ करोड़ वाले इनामी मारे जा चुके हैं। मुंबई हमले के 4 साल बाद, अप्रैल 2012 में हाफिज सईद के सिर पर 10 मिलियन डाॅलर का इनाम अमेरिका ने घोषित किया था। उसकी वजह 26/11 का मुंबई हमला था, जिसमें मारे गये 164 लोगों में 6 अमेरिकी भी थे। उससे काफी पहले, हाफिज अमेरिका के लिए आंखों का तारा हुआ करता था। 1994 में हाफिज सईद ह्युस्टन, शिकागो और बोस्टन की सभाओं को संबोधित कर चुका था। उद्देश्य जिहादी तैयार करना था। इसके सालभर बाद, 9 अगस्त 1995 को हाफिज सईद बर्मिंघम में जिहाद के वास्ते तकरीर करते दिखा। उसके इस टुअर का आयोजन ‘मजुल्ला अल दावा‘ नामक मैगजीन की ओर से किया गया था, जो हाफिज़ से जुड़ा संगठन मरकज़ दावा वल इरशाद की तरफ से प्रकाशित होती थी। उसके प्रकारांत लैस्टर में हाफिज़ सईद ने 4 हजार इस्लामियों की सभा को संबोधित किया था। कुछ दिनों बाद इनमें से कई सौ लोग जिहादी बन चुके थे। इसे ब्रिटिश खुफिया के लोग वाकिफ न हों, ऐसा हो नहीं सकता।
हिसार में जड़ें
हरियाणा के हिसार में किसानी कर चुके कमालुद्दीन को कोई जानता है? उस इलाक़े के किसी बचे-खुचे बुजुर्ग से पूछिये, शायद ही कुछ पता चले। गूजर मुसलमान कमालुद्दीन का परिवार विभाजन से पहले हिसार में किसानी करता था। दंगे की आग में इस परिवार के 35 लोग दफन हो गये। कमालुद्दीन परिवार के बचे सदस्यों के साथ यहां से पाकिस्तान वाले हिस्से सरगोधा पहुंचे। कुछ अरसे बाद 5 जून 1950 को उन्हें एक औलाद हुई। नाम रखा हाफिज़ मुहम्मद सईद! 50 साल बाद दुनिया का मोस्ट वांटेड आतंक सरगना हाफिज़ सईद बनेगा, इसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। हाफिज़ ने 2017 में ‘मिल्ली मुस्लिम लीग (एमएमएल) दल बनाया, जिसे उस समय चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया। अमेरिका ने एमएमएल और तहरीके आज़ादी जम्मू एंड कश्मीर दोनों को आतंकी संगठनों की लिस्ट में डाल रखा है। इससे बचने के लिए हाफिज ने एक और संगठन ‘अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक‘ बनाया। इससे उसका बेटा हाफिज़ तलहा सईद सरगोधा-4 से चुनाव लड़ चुका है। हाफिज़ ने दामाद हाफिज़ खालिद वलीद को भी लाहौर से चुनाव में उतारा था। ‘अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक‘ 50 प्रत्याशी पंजाब में उतारे। मगर, जीता एक भी नहीं।