राजनीति में किस्मत हो तो जींद के नवनिर्वाचित विधायक कृष्ण मिड्ढा जैसी। छोटे मिड्ढा ने जींद का उपचुनाव क्या जीता, पूरी भाजपा उन्हें गोद में उठाए हुए है। 2014 में विधानसभा चुनाव जीतने वाले 47 विधायकों में से मंत्रियों को छोड़कर कम ही ऐसे विधायक होंगे, जिन्हें पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात का मौका मिला हो। वह भी मोदी के खुद के कार्यालय में। उपचुनाव में जीत की खुशी से पूरी भाजपा फूली नहीं समा रही है। वैसे खुशी का बड़ा कारण भी है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान सहित 5 राज्यों में भाजपा की हार के बाद हरियाणा ने ही तो पार्टी को संजीवनी दी है। पहले निगम चुनाव और अब जींद उपचुनाव जीतकर। कहने वाले कह रहे हैं एक स्व. हरिचंद मिड्ढा विधानसभा में अकसर भाजपा को कोसा करते थे। वे सीधे मुख्यमंत्री को कह दिया करते थे, खट्टर साहब जींद की जनता मुझे रोती है और मैं आपको रो रहा हूं। अब वक्त ने करवट बदली तो पूरे ही हालात बन गए। उन्हीं के बेटे अब भाजपा विधायक हैं और पूरी भाजपा को खुश होने का मौका उन्होंने ही दिया है।
काका में बदलाव
‘खट्टर काका’ के तेवर इन दिनों बदले हुए हैं। लगातार मिल रही सियासी जीत से वे जोश में हैं। अफसरों पर भी शिकंजा कसा हुआ है। वे अब ढिलाई बरतने के मूड में नहीं हैं। शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई कर रहे हैं। प्रशासनिक सचिवों के साथ जिलों के अफसरों को जल्द घोषणाओं को पूरा और शुरू करवाने के आदेश दे दिए हैं। सरकारी नौकरियों की भर्तियों ने भी एकाएक तेजी पकड़ ली है। ग्रुप-डी के 18 हजार पदों पर भर्ती के साथ ही हरियाणा पुलिस में कांस्टेबल और सब-इंस्पेक्टर की भर्ती प्रक्रिया भी तेज कर दी है। बताते हैं कि कई भर्तियों को इसी माह निपटाने की तैयारी है, जिससे लोकसभा चुनाव के लिए मजबूत ग्राउंड तैयार हो सके। ग्रुप-डी के नतीजों का असर जींद उपचुनाव में ताजा-ताजा देख चुके हैं। इस बात को अब विरोधी भी मानने लगे हैं कि काका के राज में जितनी भर्तियां हुई हैं, उतनी पूर्व की किसी सरकार के समय नहीं हो सकीं।
स्वामीनाथन की परीक्षा
बादली वाले ‘छोटे स्वामीनाथन’ यानी कृषि मंत्री ओपी धनखड़ की भी अब बड़ी राजनीतिक परीक्षा होने जा रही है। इन दिनों वे पूरी तरह से व्यस्त हैं। 12 फरवरी को पीएम नरेंद्र मोदी धर्मनगरी – कुरुक्षेत्र आ रहे हैं। वे यहां पंचायती राज संस्थाओं की महिला जनप्रतिनिधियों से रूबरू होंगे। पंचायत मंत्री होने के नाते यह महकमा सीधा ‘छोटे स्वामीनाथन’ से जुड़ा है। ऐसे में साहब अपनी पूरी टीम के साथ पीएम के दौरे की तैयारियों में जुटे हैं। पंचायती राज संस्थाओं को आर्थिक तौर पर मजबूत करवाने के साथ-साथ पढ़ी-लिखी पंचायतें देने में उनकी बड़ी भूमिका रही है। वहीं, वे चौथा एग्री समिट भी इस बार गन्नौर में करवा रहे हैं। 15 से 17 फरवरी तक चलने वाले इस एग्री समिट की तैयारियां भी छोटे स्वामीनाथन ने साथ-साथ छेड़ी हुई हैं। पीएम मोदी के साथ ‘छोटे स्वामीनाथन’ के पुराने संबंध किसी से छुपे नहीं हैं। गुजरात में नर्मदा नदी पर ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ के निर्माण के लिए देशभर से लोहा इकट्ठा करने के लिए गठित समिति की कमान भी मोदी ने छोटे स्वामीनाथन को ही सौंपी हुई थी। अब पार्टी में अंदरखाने इससे परेशान रहने वालों की भी कमी नहीं है। कहने को भले ही ये ‘छोटे स्वामीनाथन’ हैं, लेकिन इनके हाथ बहुत लंबे हैं।
बाबा का तड़का
दाढ़ी वाले कामरेड बाबा यानी स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज की चिड़िया फिर चहकने लगी हैं। 5 राज्यों में भाजपा की हार और तीन जगहों पर कांग्रेस की सत्तावापसी ने बाबा की चिड़िया यानी ट्विटर एकाउंट को कुछ दिनों के लिए शांत कर दिया था। लेकिन अब फिर से वे हर छोटे-बड़े मुद्दे पर ट्वीट कर रहे हैं। अब ममता बनर्जी बनाम सीबीआई विवाद में भी बाबा ने तड़का लगा दिया है। तड़का ऐसा लगाया कि ममता को ‘ताड़का’ बता दिया। यही नहीं, रामायण का भी उन्होंने अपने ट्वीट में जिक्र कर डाला। इससे पहले बाबा केंद्र के अंतरिम बजट को ‘राकेट बजट’ और सुरजेवाला की हार पर सीधे राहुल गांधी पर भी निशाना साध चुके हैं।
बहनजी की शर्त
यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री व बसपा सुप्रीमो कुमारी मायावती ने इनेलो वाले ‘बिल्लू भाई’ की परेशानी बढ़ा दी है। जींद उपचुनाव में इनेलो-बसपा उम्मीदवार उमेद रेढू की शर्मनाक हार से अभी भाई साहब बाहर निकले भी नहीं थे कि ‘बहनजी’ ने एक और विस्फोट कर दिया। प्रदेश में इनेलो के साथ गठबंधन जारी रखने के लिए ऐसी शर्त लगा दी है, जिसके सिरे चढ़ने के आसार नहीं हैं। साफ कहा गया है कि गठबंधन तभी जारी रखा जा सकता है, जब चौटाला परिवार एक हो जाए। कहने वाले कह रहे हैं कि चुनावी नतीजों के बाद बसपा नेतृत्व ने इनेलो से अलग होने का फैसला तो कर लिया है, लेकिन गठबंधन तोड़ने के लिए ऐसा सभ्य तरीका अपनाया जा रहा है, जिससे उसकी छवि पर किसी तरह का असर न पड़े।
पेंशन की टेंशन
मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में सरकार बनते ही कांग्रेस ने बड़ा दांव खेल दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जिस तरह से किसानों के मुद्दे उठा रहे हैं, उससे साफ है कि इस बारे के लोकसभा चुनाव में किसान हर पार्टी के लिए केंद्र में रहने वाले हैं। अपने ‘खट्टर काका’ भी कांग्रेस के इस हमले की ढाल तलाश रहे हैं। प्रदेश में किसानों की पेंशन शुरू करने की योजना है। 20 फरवरी से शुरू होने वाले बजट सत्र में ही पेंशन शुरू हो सकती है। काका की यह पेंशन विरोधियों को ‘टेंशन’ दे सकती है। एक कैबिनेट मंत्री का कहना है कि पेंशन का फैसला अप्रत्याशित होगा। अब विपक्षी दल तो केवल पेंशन के चुनावी वादे ही कर सकते हैं, लेकिन काका के हाथों में ‘पावर’ है, वे तो वादे की बजाय इसकी शुरुआत ही कर सकते हैं।
-दिनेश भारद्वाज