प्रदेश में चुनाव में बेशक अभी कुछ समय है, लेकिन कांग्रेसी पूरी तरह से चुनावी गियर में हैं। कम से कम सांघी वाले ताऊ यानी हुड्डा साहब और संचार विभाग वाले रणदीप सुरजेवाला के हालिया भाषणों से तो यही लगता है। हुड्डा साहब कहीं बिजली पूरी और दाम आधे, नौकरियों में आवेदन शुल्क माफ, पंजाब की तर्ज पर कर्मचािरयों को वेतन तो बुढ़ापा व विधवा पेंशन 3000 रुपये करने की घोषणा करके माहौल बना रहे हैं। रणदीप ने हिसार में आयोजित पिछड़ा वर्ग सम्मेलन में जिस तरह से इन वर्गों के लिए राजपत्रित पदों पर आरक्षण की सीमा 15 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने का वादा कर डाला। उधर, साइकिल वाले प्रधानजी का एक सूत्री एजेंडा-विरोधियों को जवाब देने तक ही सीमित है। कभी कहते हैं प्रधान मैं ही रहूंगा तो कभी कहते हैं कि पार्टी बिना चेहरे के चुनाव लड़ेगी। कौन किस पर भारी पड़ रहा है, यह तो जनता ही बताएगी।
नौकरशाहों में टीस
हरियाणा में आमतौर पर मिलजुल कर कदमताल करने की आदी नौकरशाही पिछले कुछ समय से धंडेबंदी में बंटती दिख रही है। कम से कम एक दर्जन साथियों के साथ एक ‘सर्वशक्तिमान’ साहेब के बीच हुई तर्क-वितर्क प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का विषय हैं। इनमें से एक साहब तो ‘ताकतवर’ साहब से सीनियर हैं, जबकि बाकी कभी इन्हीं की आंखों के तारे थे। अभी तो इस धड़ेबंदी के परिणाम भले ही न दिखें, लेकिन चुनाव की रणभेरी बजते ही सारे रंग दिखाने लगें।
सीएम सिटी में ला एंड आर्डर
यूं तो अपने ‘मनोहर काका’ कानून एवं व्यवस्था के मामले में बेहद सख्त दिखते हैं, लेकिन सीएम सिटी करनाल में पिछले दिनों एक पूर्व सरपंच की हत्या के मामले में पुलिस की नाकामी चर्चा में है। मामले में मृतक के परिजनों ने बाकायदा अभियुक्तों के नाम भी पुलिस को दिए हैं। इसके बावजूद दो सप्ताह में किसी अभियुक्त को पकड़ना तो दूर पुलिस मामले का सुराग तक नहीं लगा पाई। पुलिस की नाकामी से इस विशेष समुदाय के लोगों में काका के प्रति नाराजगी है।
मौज में जुगाड़ वाले
भाजपा प्रदेश में सत्ता का चरित्र बदलने का दावा कर रही है, लेकिन जुगाड़ी अफसर हैं कि उसकी मंशा को एक झटके में ध्वस्त कर देते हैं। जनस्वास्थ्य विभाग के दो सेवानिवृत्त मुख्य अभियंताओं के कारनामे और एक आईएफएस के लिए नये बोर्ड का गठन पिछली सरकार के कार्यकाल की याद दिला रहा है। इनमें से एक मुख्य अभियंता को रिटायरमेंट के 10 माह बाद तालाब प्राधिकरण का सदस्य सचिव नियुक्त किया गया है, तो दूसरे साहब शुरू से ही चौटाला-हुड्डा सरकार के खासमखास रहे। ये साहब जनस्वास्थ्य विभाग से सेवानिवृत्ति के अपने आदेश पर स्टे लेने में कामयाब रहे। विभागीय अधिकारियों को ये रास नहीं आया। हाईकोर्ट में जल्द सुनवाई की याचिका दायर कर दी। फैसला इसी माह हो सकता है। साहब के स्टे के चलते विभाग में प्रमोशन की बाट जोह रहे कई अधिकारियों के होश गुम हैं। आईएफएस वाले साहब की तो और भी बल्ले-बल्ले है। न बॉयो-डाइवर्सिटी है और न ही बोर्ड, फिर भी गाड़ी-कोठी का प्रबंध सुरक्षित है।
‘खाकी’ की परीक्षा
खाकी वाले ‘बड़े साहब’ फिर से चुनौतियों में घिर गए हैं। पिछले वर्ष इसी माह डेरा प्रकरण के चलते हाईकोर्ट की फटकार झेल चुके पुलिस मुखिया को अब जाट आंदोलन से निपटना होगा। जाटों ने नौ जिलों में आंदोलन छेड़ दिया है। इस बार लग तो सरकार भी सख्त रही है, लेकिन राज्य पुलिस के सहारे ही आंदोलनकारियों से निपटने की तैयारी है। ऐसे मौकों पर अकसर पैरा-मिल्ट्री फोर्स को बुला लेने वाली काका की सरकार ने इस बार ऐसा नहीं किया है। सो, खाकी वाले साहब की चुनौती दोहरी हो गई है। वैसे उनसे पूर्व के सभी ‘बड़े साहब’ का इतिहास यह है कि वे ‘बेआबरू’ होकर निकले हैं। वैसे भी इन साहब की तो रिटायरमेंट नजदीक है। इसके तुरंत बाद एडजस्टमेंट भी प्रस्तावित है। यानी जरा सी चूक, अगले पांच वर्षों के लिए भारी पड़ सकती है।
आखिर में चुनावी आहट
लोकसभा के चुनाव समय पूर्व होने और इसके साथ ही विधानसभा के चुनाव करवाए जाने की खबरों से सत्तारूढ़ भाजपा के भाई लोग बड़ी दुविधा में हैं। अधिकांश मंत्री और विधायक अपना कार्यकाल पूरा करना चाहते हैं। ऐसे में अगर ऊपर से आदेश आ गए तो समय से पहले चुनावी रण में कूदना पड़ सकता है। सीएमओ के एक बड़े नेताजी यह बात स्वीकार करते हैं कि अगर लोकसभा के साथ चुनाव कराए तो सही नहीं होगा। असल में उन्हें लगता है कि केंद्र में फिर से एनडीए की वापसी तय है। ऐसे में एक बार केंद्र में सरकार बन जाए तो राज्य में वापसी करना थोड़ा आसान हो जाएगा। साथ चुनाव करवाए जाने के फायदे भी हो सकते हैं तो नुकसान से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
-दिनेश भारद्वाज